इन दिनों यूँ तो काम की आपा-धापी में कभी समय नहीं मिल पाया मगर जब भी समाचार चैनलों की तरफ मुखातिब हुआ तो हर जगह शोएब-सानिया के चर्चे ही मिले। कई लोग कई तरह की बातें कर रहे थे, कुछ विचार अपने मन में भी आये जिन्हें ब्लॉग के माध्यम से प्रस्तुत करने का जी हुआ मगर मौका नहीं मिल पाया। आज जब कुछ लिखने बैठा हूँ तो असमंजस में पड़ गया हूँ। शोएब-सानिया पर कुछ लिखूं या मीडिया में TRP की बढती महत्ता पर। कुछ समझ नहीं आ रहा। दोनों पर कुछ लिखने का मन कर रहा है। 12 घंटे की इमरजेंसी ड्यूटी के बाद अभी काफी थकावट भी महसूस हो रही है। थकावट के असर को कम करने के लिए चलिए थोड़ी मनोरंजक बातें ही हो जाएँ। तो आज का पोस्ट अभी के समय के सबसे बड़े मनोरंजन के माध्यम, न्यूज़ चैनलों पर एक व्यंग्य ही हो जाये। प्रस्तुत है सभी भारतीय न्यूज़ चैनल पर हफ्ते भर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों का ब्यौरा!
दिन सोमवार, हफ्ते का पहला दिन:
सुबह सुबह एक और प्रिन्स एक खड्डे में गिर गया। पूरा का पूरा सोमवार सभी चैनलों पर प्रिन्स की खबर से ही पटा रह गया। रात में जब तक उसे खड्डे से निकाल नहीं लिया गया, किसी भी रिपोर्टर ने चैन से सांस नहीं ली। पल-पल की खबर, सबसे तेज़, घटना की सबसे ताज़ी तस्वीरें इत्यादि ने जमकर एक ब्रेकिंग न्यूज़ बना दिया। दिन भर का रोज़गार न्यूज़ वालों को तो मिल ही गया, साथ साथ उन सब लोगों को भी मिल गया जो दिन भर इस ताक में कैमरे के आसपास टिके रह गए कि कभी उनकी भी तस्वीर टीवी पर आ जाये। समझ में नहीं आता कि कैसे अचानक इन ३-४ सालों में ऐसी घटनाओं की संख्या इस प्रकार बढ़ गयी है। सोचता हूँ कि कहाँ अंतर आया। क्या पहले गड्ढे नहीं खोदे जाते थे या पहले प्रिन्स जैसे बच्चे पैदा नहीं लिया करते थे। या ऐसा हो गया है कि न्यूज़ वालों के पास समय ही समय है ऐसी ख़बरों को हम तक पहुचाने के लिए। स्कूल में गुरु जी कहाँ करते थे "ऑलवेज थिंक पोजिटिव, हमेशा सकारात्मक सोचो।" चलिए कुछ सकारात्मकता इस प्रिन्स-काण्ड में भी ढूंढें। न्यूज़ चैनलों पर इनकी बढती संख्या का कारण क्या हो सकता है। या तो अभी गड्ढे ज्यादा संख्या में खोदे जा रहे हैं, या प्रिन्स जैसे चंचल बच्चों की संख्या बढ़ गयी है या फिर चैनलों का कभरेज एरिया बढ़ गया है। अगर गड्ढे ज्यादा खोदे जा रहे हैं तो ख़ुशी मनाने की बात है, अरे भाई, देश के infrastructure का विकास हो रहा है। अगर प्रिन्स आज ज्यादा खेल-कूद कर रहा है तो ये भी ख़ुशी की बात है, आखिर, वो कुपोषण का शिकार होकर घर में कमजोर तो नहीं बैठा हुआ है; कहीं न कहीं स्वास्थय सेवाएं सुधरी जरूर होंगी। यदि चैनलों का बढ़ता कवरेज कारण है तो भी खुश हो जाइये, अरे, qualitative न सही quantitative विकास तो जरूर हो रहा है इन चैनलों का। तो जनाब जब भी कभी कोई प्रिन्स कहीं गड्ढे में गिरे तो अफ़सोस मत मनाइए न ही न्यूज़ वालों से रुष्ट होइए, ख़ुशी मनाइए, आखिर, हमारे विकास की जीती जागती तस्वीर जो ठहरी ये खबर।
मंगलवार, दूसरा दिन:
कल दिन भर प्रिन्स की थकावट के बाद आज कुछ आराम करने का मौका मिल गया चैनल वालों को। न कही कोई प्रिन्स गड्ढे में गिरा, न कहीं किसी बिहारी पर हमला हुआ और न ही किसी सेलिब्रिटी ने किसी को तमाचा मारा। कल के भयानक रोज़गार के बाद आज की बेरोज़गारी में कोई खबर ही नहीं मिली जिसे सनसनीखेज बनाया जा सके। करें तो करें क्या। ध्येय तो एक ही बचा है न्यूज़ का आज के युग में, और वो है मनोरंजन। तो छोटे परदे से बढ़कर मनोरंजन और कहाँ। दिन भर आनंदी, अम्मा जी, लाली, पुनपुन वाली, इत्यादि न्यूज़ चैनलों पर छाई रहीं। कौन से सीरियल में क्या होने वाला है ये भी ब्रेकिंग न्यूज़ बन गया। जब बीच बीच में माहौल थोडा सीरियस होता गया तो लाफ्टर शो की झलकियाँ भी मिलीं। रात होते-होते जब नक्सलियों से न्यूज़ वालों की खस्ताहाल देखी नहीं गयी तो उन्होंने ही ब्रेकिंग न्यूज़ प्रदान कर दी सब के लिए। छोटा-नागपुर के जंगल में एक और नक्सल हमला। मध्य रात्रि से अचानक फिर से सभी संवाददाता सक्रिय हो गए।
बुद्धवार, वृहस्पतिवार एवं शुक्रवार:
तीनों दिन चौबीसों घंटे एक ही समाचार। ब्रेकिंग न्यूज़, नक्सल हमला। पहला दिन सिर्फ हमले की विस्तृत रिपोर्ट में बीत गया। दूसरा दिन सरकारी मशीनरी की खामियां निकालने में और तीसरा दिन पक्ष-विपक्ष में बहस कराने में ही निकल गया। बीच में कुछ घंटे कभी कभार उन शहीदों को भी याद कर लिया गया जो हमले के शिकार बने। सब को अपनी-अपनी बात रखने का मौका दिया गया। जो इस घटना से सम्बंधित हो उसने जितना भाग चैनल वालों के साथ लिया उससे कही ज्यादा उन लोगों ने लिया जिनका इस घटना से दूर-दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं। आम जनता के लिए SMS पोलिंग भी खोल दी गयी। आम लोगों ने जमकर अपनी राय भेजी। समाचार की जगह सभी चैनलों पर वही SMS नीचे स्ट्रीम होते रहे। इन तीन दिन देश-दुनिया में और जगह क्या हुआ नहीं हुआ, किसी को मालूम नहीं चला। आखिर क्यों पता चले। हमले की ख़बरों से ही जब ऐसी TRP मिली तो क्यों कोई और खबर खोजे। क्यों कोई बेकार की मेहनत करे। आराम से ऐसे ही नाम और पैसे न कमाए जाएँ??
शनिवार:
लीजिये, अभी नक्सल हमले ने दम तोडना शुरू ही किया था कि सचिन ने शुक्रवार की शाम ही एक शतक ठोक दिया। शनिवार की सुबह से ही सचिन पुराण सभी चैनलों पर शुरू हो गए। पूरी की पूरी जीवन गाथा न जाने हर घंटे कितनी बार बारम्बार दिखाई गयी। ऐसी ऐसी बातें बताई गयी सचिन के बारे में जो शायद सचिन को खुद नहीं मालूम होंगी। सचिन का मन भी अघा गया होगा अपने बारे में एक ही बात हर घंटे सुन कर मगर ये रिपोर्टर का मन कभी नहीं अघाता। चाहे कितनी ही बार हो, किसी भी समाचार को प्रस्तुत करने में उनकी तन्मयता कभी कम होती नहीं दिखती है। रात तक तो बच्चों-बच्चों को सचिन के बारे में इतनी बातें पता हो गयीं होंगी जितनी उन्हें खुद के बारे में भी नहीं होगी। खैर, कम से कम न्यूज़ वालों ने सामान्य ज्ञान तो बढाया बच्चों का।
रविवार:
आज फिर से न कहीं कोई बम विस्फोट हुआ, न ही किसी नेता का कोई घोटाला पकड़ा गया और न ही किसी औद्योगिक घराने के भाइयों के बीच की कोई टकराव सामने आई। आज फिर वही स्थिति उत्पन्न हो आई। करें तो करें क्या। एक बार फिर रुख हुआ छोटे परदे की तरफ। फिर वही आनंदी, फिर वही अम्माजी, फिर वही राजू श्रीवास्तव। फिर इन्ही लोगों ने न्यूज़ चैनलों को बचा लिया नंगे होने से। आम जनता को अपने साथ खिचे रहने के लिए बेतुके SMS पोल आज भी यूँही चलते रहे और लोग आराम से अपने SMS भेजते रहे। न्यूज़ चैनल को TRP आज भी पूरी मिल ही गयी।
सोमवार, अगला सप्ताह:
आज फिर शुरुआत हुई एक प्रिन्स के गड्ढे में गिरने से। आज फिर वही सब हुआ जो पिछले हफ्ते हुआ.................
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