वो हँसता था, खिलखिलाता था,
झूमता था, गाता था, गुनगुनाता था,
दोस्ती थी, प्यार था,
मस्ती थी, तकरार था.
वो जिंदा था, क्यूंकि,
वो ज़िन्दगी को जीता था.
हँसता वो आज भी है, मगर,
वो हँसी कही खो गयी.
खिलखिलाना वो भूल गया है,
झूमना, गाना, गुनगुनाना
उसकी आदत नहीं रही.
दोस्त हैं, प्यार है, मगर.
वो प्यार वो दोस्ती नहीं रही.
जिंदा वो आज भी है,
पर ज़िन्दगी जी नहीं पाता.
अकेला, गुमसुम, चुपचाप,
जब बैठता है तो रोता है,
सब के साथ होता है तो
बस सांस लेता है, क्यूंकि, जिंदा है.
अक्सर चिल्ला उठता है, चीखता है.
एक गुस्सा है, मन में, आग है.
एक विस्फोट होने की आहट है.
ऐसा विस्फोट जिसकी गूंज
उसे खुद बहरा कर देगा,
वो जानता है.
वो समझता है,
एक ऐसा विस्फोट जो
आस पास सब ख़त्म कर देगा,
इसलिए रोकता है, रोके रहता है.
दिल के हर कोने में
गुस्से को छुपाने की जुगत में रहता है.
तड़पता है, सब कुछ सहता है,
नाकाम कोशिश करता रहता है
और अंत में चीख उठता है,
अपने दोस्तों पर, अपने प्यार पर.
वो कहते हैं, वो बदल गया है,
वो कुछ नहीं बोलता, बस सुनता है
बैठता है, सोचता है, ढूंढता है,
खुद को देखता है तो पाता है,
वो आज खुद का अक्स न रहा,
जो पहले था, अब वो शख्स न रहा.
2 comments:
Sirji..
kamaal likha hai ekdum..
ek ek line aar paar nikal gai..
bahut khoob..
kabhi waqt mile to mere blog par bhi aaiyega.. apni sabse nai post mein maine bhi kuch isi tarah k jazbaato k baare mein likha hai.. :)
palchhin-aditya.blogspot.in
@Aditya & डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री मयंक: धन्यवाद!!!
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