भगवान् भला करे उसका जो आज ड्यूटी पर आने से पहले उससे बात हुई और उसने दुआ दी कि आज कोई डेथ सर्टिफाई न करनी पड़े........पता नहीं इमरजेंसी ड्यूटी के ऐसे कितने और 8 घंटे मिलेंगे ज़िन्दगी में जिसमे एक भी मौत से पाला न पड़े.........अपनी 8 घंटे की ड्यूटी बजाकर इमरजेंसी से निकल ही रहा था कि बाहर गेट पर एक दोस्त मिल गया, एक बैचमेट...........पिछले 5 सालों में जो कुछ चीज़े कमाई हैं यहाँ कॉलेज में उनमे से एक उसकी दोस्ती भी है. अगले 8 घंटों की शिफ्ट उसकी ही थी..........हाथ में सिगरेट लिए अपने मदमस्त चाल में वो चला आ रहा था.
"एक सुट्टा मारेगा?", उसने पूछा. मैंने कुछ नहीं कहा. "मारा कर साले........कब तक सन्यासी बना रहेगा.........बड़े काम की चीज़ है साले........जो अन्दर 8 घंटे तक दिमाग की दही करके आया है न उससे बचने का सबसे सरल, सस्ता और टिकाऊ उपाय है बे."........ पिछले ५ सालों में न जाने उसने कितनी बार सिगरेट के गुण गिनाये थे........."चल कॉफ़ी पीला यार, सर दर्द कर रहा है.", हर बार की तरह मैंने डिमांड रख दी. बगल के कैंटीन में दो कॉफ़ी का आर्डर करके उसने पूछा, "क्यूँ बे साले, आज कितनों को मौत के घाट उतारा बे?"............... इंटर्नशिप शुरू होने के बाद से हर इमरजेंसी शिफ्ट के बाद आपस में बात करने को ये ही पहली टोपिक मिलती थी. साढ़े चार सालों तक बीमारियाँ और उनके इलाज़ को पढने के बाद जब सच में बीमारियों से पाला पड़ा तो पता चला कि साली सारी किताबें बकवास हैं. मौत की कोई गारंटी नहीं होती. वो अपना एप्वाईंटमेंट खुद लेकर आती है. और तुम कुछ भी कर लो, कुछ नहीं कर सकते.
"अबे यार, आज तो गज़ब हो गया, साला एक भी डेथ सर्टिफाई नहीं किया यार. भीड़ थी, पेशेंट थे, लेकिन फिर भी, पता नहीं. जानता है, आज आने के पहले एक पुरानी दोस्त से बात हुई, फोन पर. उसने दुआ दी थी कि आज मौत से पाला न पड़े. साली की दुआ लग गई लगता है.", मैंने उससे कहा............. "सच में यार, लकी मैन. अब मैं जाता हूँ, देखता हूँ भगवान् मेरे हाथों कितनो की वाट लगाता है आज. साला अजीब लगता है यार..........एक जज मौत की सजा सुनकर कलम की नीब तोड़ देता है. उस कलम से फिर कोई काम नहीं होता, और हम साले न जाने यूँही लगातार कितनो को सर्टिफाई करते रहते हैं.........यार अब तो हाथ भी नहीं धोता मैं सर्टिफाई करने के बाद." सिगरेट की अंतिम कश खीचते हुए उसने कहा.............. "ओये दो-दो रसगुल्ले भी बढ़ाना यार", कैंटीन वाले को उसने आर्डर किया.............. "कितना अजीब लगता है न यार, मौत की बातें कर रहे हैं और मन साला रसगुल्ले खाने को कर रहा है. साली इंसानियत कही घोड़े बेचकर सो गयी लगती है.", मैंने उससे कहा था. "अबे जो होता है साला अच्छे के लिए ही होता है. जब तक मौत से पाला नहीं पड़ता था तब तक मौत 'मौत' लगती थी अब तो साली यारी हो गयी है उससे. अच्छा है न कि कोई फर्क नहीं पड़ता. साला अगर लोड लेने लगते तो ज़िन्दगी यूँही सड़ जाती. छोड़ बे, अपन लोग ऐसी लाइन में आ ही गए हैं तो अब इस बात का रोना क्या. एन्जॉय कर साले." उसने मेरा ढांढस बढाया था. अपने मन को शांत करने के लिए आदमी कई बहाने ढूँढ लेता है, उसने भी यही किया था.
कॉफ़ी की चुस्कियां ख़त्म हो चुकी थी. मेरे चेहरे पर पिछले 8 घंटों की थकान और उसके चेहरे पर आने वाले 8 घंटों की चिंता साफ़ दिख रही थी.............. ऊपर से तो हर कोई मजबूत दिखना चाहता है कि उसे मौत से कोई फर्क नहीं पड़ता पर अन्दर से सब विचलित होते हैं............ वो भी ऐसा ही था. मन में उसके भी यही चल रहा था. "जा ड्यूटी कर, किस्मत अच्छी रही तो तुझे भी एक भी सर्टिफाई नहीं करना पड़ेगा." मैंने उसे हिम्मत दी थी. "साले खुद एक लौंडिया की दुआ से बच गया तो बड़ा फ़कीर बन रहा है!" यूँही डपट कर हंस देना उसकी पुरानी आदत थी. उस समय भी उसके चेहरे पर हंसी दिख रही थी. अंतिम रसगुल्ले को मुंह में रखते हुए मैंने उससे कहा, "चल अब घर चलता हूँ भाई. जाकर सबसे पहले उसे ही फोन करके शुक्रिया करूँगा. जा तू भी, सर खोज रहे होंगे." "साला वो टकलू क्या खोजेगा मुझे. साला खुद तो कुछ आता नहीं बस बैठा हुआ आर्डर चलता रहता है.", बोलते हुए वो मेरे साथ कैंटीन से बाहर निकल गया.
बाहर थोड़ी अफरा-तफरी मची हुई थी.............कोई रोड एक्सीडेंट में बुरी तरह घायल लड़की को कुछ लोग इमरजेंसी के अन्दर ले जा रहे थे..............मैंने उससे कहा, "जा साले, कर जाकर सर्टिफाई.".........."लगता है आज फिर शुरुआत मौत से ही होने वाली है भाई." मुस्कराकर उसने कहा था.........वो अन्दर चला गया और मैं अपनी गाडी में बैठकर घर की ओर बढ़ गया. थोरी ही दूर पर मोबाइल बज उठा. एक दोस्त का फ़ोन था. फ़ौरन ब्रेक लगाकर यु-टार्न लिया और फिर इमरजेंसी पहुच गया. जिस दोस्त की दुआओं ने दिन भर मौत के साए से दूर रखा वही दोस्त वहाँ अपनी आखरी साँसे गिन रही थी. एक्सीडेंट हुआ था. होश में थी.................'और कोई डेथ सर्टिफाई किया या नहीं, नहीं मालूम पर मेरा तुम ही करना.'..............उसके अंतिम शब्द थे!
दम तोड़ती उन आँखों ने अंतिम गुजारिश की थी.
डाक्टरी के लबादे ने दिल तक पहुचने ही न दिया.
उम्र और इंसानियत का रिश्ता, सुना था, इन्वर्सली प्रपोर्शनल होता है!!!
11 comments:
आशू भाई, ग़ज़ब का लिखते हो। इसे पढ़ते हुए रोमांच, प्रेम, उदासी और प्रसन्नता से होकर गुजरना पड़ा है।
भावुक कर दिया इस आलेख ने। मृत्यु तो अपना appointment लेकर ही आती है।
@मनोज जी: आप लोग का साथ यूँही रहा तो आगे भी लिखने की कोशिश जारी रहेगी. सराहना के लिए धन्यवाद!
@zeal: सराहना के लिए धन्यवाद! हम जैसों के लिए तब बड़ा मुश्किल होता है जब ऐसे भावुक कर देने वाले लम्हे सामने आते हैं और हम professionalism के मारे भावुक नहीं हो सकते!
बहुत ही सही अवलोकन....एक संग्रहणीय पोस्ट.
आपकी मेहनत, लगन और विद्वता श्लाघनीय है ! प्रशंसनीय है !
bahut hi umda lekh likha hai..
mere blog par bhi kabhi aaiye
Lyrics Mantra
मार्मिक अभिव्यक्ति।
जन्म दिन की ढेर सारी शुभकामनायें।
wish you a very happy birth day ..
bahut achi hai sir bas itna hi kahna hai ki"Khud pe Roye ki jamne ko hasya jay,
jindgi tujhse bata ki kaise nibhaya jaye....."
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