उफ्फ़! फिर वही कन्फेशन। एक पूरा साल बीत गया। कभी अंदाजा ही नहीं लगा। इतने दिन बीत गए इधर आये हुए। ऐसा कुछ भी नहीं कि 13 अंक से कोई नफरत हो या वैसा कुछ अंधविश्वास कि 2013 में कुछ काम ही न करूँ। वक़्त के लहरों में न जाने कब पूरा एक साल बह निकला, इसका अहसास ही कभी नहीं हो सका। पिछले कुछ दिनों से ब्लॉग की याद आ रही थी और आज जब इस ओर आना हुआ तब जाकर पता चला कि यहाँ कभी अच्छा-ख़ासा समय बिताने वाला मैं पिछले पूरे साल में कभी आया ही नहीं।
हर बार जब भी इस तरह का एक बड़ा अंतराल आया है तो कहीं न कहीं मन में सवाल उठते हैं इस ब्लॉग की जरुरत को लेकर। आत्मचिंतन करने को मन विवश हो उठता है और सबसे बड़ा सवाल इस ब्लॉग के पूरे अस्तित्व को लेकर ही उठ खड़ा होता है। आखिर वह कौन सी जरुरत थी या ऐसा क्या शौख था कि इस ब्लॉग पर मैं कभी इतना समय बिताया करता था। और अब मेरी ज़िन्दगी में ऐसे क्या बदलाव आ गए हैं कि न अब वो जरुरत रही और न ही वो शौख।
हालांकि, क्रिएटिविटी हमेशा से अकेलेपन की नाजायज़ औलाद की तरह रही है। इस ब्लॉग पर मेरी क्रिएटिविटी, मगर, सबसे ज्यादा उन दिनों में ही रही जब मैं घर में रहता था, कॉलेज में पढाई कर रहा था और दोस्ती और रिश्तेदारी अपने चरम पर थी। आज अकेला हॉस्टल में रहता हूँ। दोस्ती सीमित है और रिश्तेदारी एसटीडी फ़ोन कॉल्स पर निर्भर रह गयी है। फिर भी कभी ब्लॉग्स का ख्याल मन में नहीं आया, ये थोड़ा अचंभित करने जैसा लगता है।
ब्लॉग नहीं लिखने का कारण हमेशा एक ही बहाने पर थोपता रहा हूँ। लिखने को कुछ था ही नहीं। इस बार ये बात हज़म होने वाली नहीं लगती। एक आदमी की ज़िन्दगी में पूरे एक साल से भी ज्यादा के समय में कुछ महत्त्वपूर्ण हुआ ही नहीं हो, ये कहीं से नहीं पचता। व्यक्तिगत ज़िन्दगी से लेकर पारिवारिक और सांसारिक ज़िन्दगी में कई बदलाव पिछले पूरे साल ने देखे। 6 साल पुराने प्यार की शादी ठीक होने से लेकर साल के अंत में शादी होने तक की पूरी यात्रा ही ब्लॉग पर बार बार आने के लिए काफी थी। परिवार की कुछ दुःखद घटनाओं का दर्द भी यहाँ बांटा जा सकता था, मगर नहीं।
वक़्त नहीं मिला का बहाना भी नहीं चल सकता इस बार। जितना वक़्त इंटरनेट की गोद में इस पूरे साल में बीता है उतना शायद ही कभी और बीता होगा। बैठे बैठे Youtube पर न जाने कितने विडियो देख डाले। फेसबुक पर इतना समय बिताया कि अब ऊब सी हो गयी है और दिन में कभी कभार कुछ पलों के लिए ही उधर जाता हूँ और बंद कर देता हूँ। शायद उसी ऊबाई का नतीजा है कि फिर से ब्लॉग की तरफ आने का मन किया।
देश दुनिया की ख़बरें पिछले साल ऐसी रही जिसने सोचने को मजबूर किया। अन्ना के आंदोलन से आप के अस्तित्व में आने तक और फिर उसी आप की ऐतिहासिक जीत ने मन में कई सवाल खड़े किये। उन सवालों या उनसे जुड़ी स्थितियों पर अपने नजरिये के साथ कई बार ब्लॉग पर आया जा सकता था, लेकिन नहीं।
इसके पहले भी कई बार इस ब्लॉग के साथ मैंने बेवफाई की है। हर बार वादे के साथ लौटा हूँ कि ये एक नई शुरुआत है। हर बार उम्मीद रही है कि आगे ऐसा मौका नहीं आने दूंगा। उम्मीद इस बार भी है मगर वादा इस बार नहीं करूंगा। कहीं न कहीं वादाखिलाफी के डर से ज्यादा भरोसा अपने आलसीपने पर है जो शायद फिर से मुझे मेरे ब्लॉग से दूर ले जाये। इसी डर और भरोसे की ज़ंग के बीच उम्मीद करता हूँ इस ब्लॉग पर क्रिएटिविटी ज़िंदा रहे.…
हर बार जब भी इस तरह का एक बड़ा अंतराल आया है तो कहीं न कहीं मन में सवाल उठते हैं इस ब्लॉग की जरुरत को लेकर। आत्मचिंतन करने को मन विवश हो उठता है और सबसे बड़ा सवाल इस ब्लॉग के पूरे अस्तित्व को लेकर ही उठ खड़ा होता है। आखिर वह कौन सी जरुरत थी या ऐसा क्या शौख था कि इस ब्लॉग पर मैं कभी इतना समय बिताया करता था। और अब मेरी ज़िन्दगी में ऐसे क्या बदलाव आ गए हैं कि न अब वो जरुरत रही और न ही वो शौख।
हालांकि, क्रिएटिविटी हमेशा से अकेलेपन की नाजायज़ औलाद की तरह रही है। इस ब्लॉग पर मेरी क्रिएटिविटी, मगर, सबसे ज्यादा उन दिनों में ही रही जब मैं घर में रहता था, कॉलेज में पढाई कर रहा था और दोस्ती और रिश्तेदारी अपने चरम पर थी। आज अकेला हॉस्टल में रहता हूँ। दोस्ती सीमित है और रिश्तेदारी एसटीडी फ़ोन कॉल्स पर निर्भर रह गयी है। फिर भी कभी ब्लॉग्स का ख्याल मन में नहीं आया, ये थोड़ा अचंभित करने जैसा लगता है।
ब्लॉग नहीं लिखने का कारण हमेशा एक ही बहाने पर थोपता रहा हूँ। लिखने को कुछ था ही नहीं। इस बार ये बात हज़म होने वाली नहीं लगती। एक आदमी की ज़िन्दगी में पूरे एक साल से भी ज्यादा के समय में कुछ महत्त्वपूर्ण हुआ ही नहीं हो, ये कहीं से नहीं पचता। व्यक्तिगत ज़िन्दगी से लेकर पारिवारिक और सांसारिक ज़िन्दगी में कई बदलाव पिछले पूरे साल ने देखे। 6 साल पुराने प्यार की शादी ठीक होने से लेकर साल के अंत में शादी होने तक की पूरी यात्रा ही ब्लॉग पर बार बार आने के लिए काफी थी। परिवार की कुछ दुःखद घटनाओं का दर्द भी यहाँ बांटा जा सकता था, मगर नहीं।
वक़्त नहीं मिला का बहाना भी नहीं चल सकता इस बार। जितना वक़्त इंटरनेट की गोद में इस पूरे साल में बीता है उतना शायद ही कभी और बीता होगा। बैठे बैठे Youtube पर न जाने कितने विडियो देख डाले। फेसबुक पर इतना समय बिताया कि अब ऊब सी हो गयी है और दिन में कभी कभार कुछ पलों के लिए ही उधर जाता हूँ और बंद कर देता हूँ। शायद उसी ऊबाई का नतीजा है कि फिर से ब्लॉग की तरफ आने का मन किया।
देश दुनिया की ख़बरें पिछले साल ऐसी रही जिसने सोचने को मजबूर किया। अन्ना के आंदोलन से आप के अस्तित्व में आने तक और फिर उसी आप की ऐतिहासिक जीत ने मन में कई सवाल खड़े किये। उन सवालों या उनसे जुड़ी स्थितियों पर अपने नजरिये के साथ कई बार ब्लॉग पर आया जा सकता था, लेकिन नहीं।
इसके पहले भी कई बार इस ब्लॉग के साथ मैंने बेवफाई की है। हर बार वादे के साथ लौटा हूँ कि ये एक नई शुरुआत है। हर बार उम्मीद रही है कि आगे ऐसा मौका नहीं आने दूंगा। उम्मीद इस बार भी है मगर वादा इस बार नहीं करूंगा। कहीं न कहीं वादाखिलाफी के डर से ज्यादा भरोसा अपने आलसीपने पर है जो शायद फिर से मुझे मेरे ब्लॉग से दूर ले जाये। इसी डर और भरोसे की ज़ंग के बीच उम्मीद करता हूँ इस ब्लॉग पर क्रिएटिविटी ज़िंदा रहे.…
2 comments:
Welcome back...
accha laga, ab kuchh regular likhna shuru karo
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