दो दिन के बाद वैलेंटाइन डे आ रहा है। प्रेमी-प्रेमिकाओं का महापर्व आ रहा है। मेरे लिए तो ये दिन एक अलग महत्व भी रखता है। १४ फ़रवरी ही मेरा जन्मदिन भी है। मैं झूठ नहीं कह रहा। कईयों को लगता है कि मैं यूँही जानबूझ कर अपना जन्मदिन बताता हूँ इस दिन, मगर ऐसा है नहीं। हम तो जब पैदा हुए थे तो मेरे घर में क्या, मुझे लगता है, पूरे भारत में कोई नहीं जानता होगा इस दिन के बारे में। हमने भी अपने १० जन्मदिन ऐसे ही गुजार दिए थे जब अचानक से भारत में भी ये दिन मनाने लगे लोग। अचानक से शाहरुख साहब की कोई फिल्म आई थी जिसमे इसका ज़िक्र था। शाहरुख ने परदे पर ये दिन क्या मनाया सारा हिन्दुस्तान चल दिया उनके पीछे। हमारे यहाँ भी लोग इसे धूमधाम से मनाने लगे। पाश्चात्य संस्कृति के प्रति हमारे बढते हुए झुकाव की एक झलक इस दिन को मनाने के प्रति हमारे जोश में भी दिखाई दे जाती है। अगर ऐसा नहीं होता तो शायद प्यार को पवित्र मानने वाले हमारे देश में हम कोई एक खास दिन मुक़र्रर नहीं कर देते प्यार जताने के लिए।
बहरहाल, जब से ये दिन प्रचलित हुआ है हमारे यहाँ तब से मैं सभी दोस्तों को सबसे बड़ा झूठा प्रतीत होने लगा हूँ। किसी को यकीन नहीं होता कि मेरा सच्चा जन्मदिन १४ फ़रवरी ही है। किसी को भी अपना जन्मदिन बताता हूँ तो पहला जवाब आता है, 'साले झूठ मत बोल, सच बता ना तेरा जन्मदिन कब है।' कोई कहता है, 'साला लड़की पटाने के लिए झूठ बताता है अपना जन्मदिन।' मैं क्या कहूँ कि मैं झूठ नहीं बोल रहा। बस यही कह देता हूँ, 'यार पता नहीं था पैदा लेते वक्त इस दिन के बारे में नहीं तो एक दिन पहले या बाद में ही आता।' सच कहूँ तो एक तरह से ये मेरे लिए गड़बड़ ही है कि मेरा जन्मदिन इसी दिन पड़ता है। लडकियां एक ही दिन दोनों बातों के लए मुबारकवाद दे देती हैं, दो दिन होता तो उनसे भी दो दिन बाते होती। खैर क्या करें, अब तो हो गए पैदा, दुबारा तो हो नहीं सकते।
खैर, कुछ भी हो इस दिन का फायदा काफी मिला है हमारे देश में। हमारे यहाँ बेरोजगारी एक बड़ी समस्या है। ऐसी स्थिति में यदि कोई चीज़ एक दिन का रोज़गार हज़ारो लोगो को दे दे तो हमें उसका स्वागत तो जरूर करना चाहिए। वैलेंटाइन डे भी ऐसा ही एक दिन है। कितने हज़ार प्रेमियों को इसे लेकर अपने निकम्मेपने को दूर भगाने का एक बहाना मिल जाता है। जहाँ आम दिनों में उनका सारा वक्त ऐसे ही बैठे बैठे फोन पर बतियाते बीत जाया करता है वहीँ इस दिन को लेकर हफ्ते भर पहले से ही उन्हें काम मिल जाता है। प्रेमिका के लिए कोई उपहार खरीदने के बहाने घंटों कई दुकान के चक्कर काटने में लग जाते हैं। किस तरह से उस दिन को मनाया जाय, कई घंटे तो ये सोचने में ही लग जाते हैं। सालभर जो आदमी ऐसे ही निकम्मा बैठा रहता है उसके लिए यदि कोई दिन इतना काम लेकर आ जाये तो ऐसे दिन का स्वागत तो होना ही चाहिए।
प्रेमी-प्रेमिका ही नहीं, उपहार बेचने वाले दुकानदारों के लिए भी वैलेंटाइन डे काफी महत्त्वपूर्ण है। साल भर एक भी उपहार बिके या न बिके इस दिन के लिए उनके दुकान में रौनक बड़ी जमती है। कई उपहार बिक भी जाते हैं। आर्चिज के ग्रीटिंग कार्ड की दुकान की तो बात ही कुछ और होती है। जिस तरह कि साज-सजावट हमारे यहाँ दिवाली में होती है वैसा ही कुछ नज़ारा उनके यहाँ इस दिन पर देखने को मिलता है। एक बार मैं किसी के लिए 'Get Well Soon' का कार्ड लेने गया था। संयोग ऐसा था कि समय 14 फ़रवरी के आसपास का ही था। दुकान में एक भी कार्ड नहीं मिला। सारी कि सारी दुकान वैलेंटाइन डे के कार्ड से ही भरी पड़ी थी। कुछ नहीं कर सकता था। मुंह लटकाकर निकल गया। दुकानदार ने झाड़ा भी था। कहा था, 'मौका कुछ और कार्ड लेने चले आते हैं कोई और!' अब मैं क्या करता, तब तो हम single ही थे, चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते थे।
वैलेंटाइन डे को मनाने वाले लोगो के लिए तो ये दिन महत्त्वपूर्ण है ही, इसका विरोध करने वालो के लिए भी ये दिन उतना ही महत्त्वपूर्ण है। बजरंग दल हो या शिव सेना, विश्व हिंदू परिषद हो या श्री राम सेना, सभी के कार्यकर्ताओं को भी रोजगार मिल जाता है। साल भर बिना काम के बिताने वाले इन लोगो के लिए वैलेंटाइन डे का हफ्ता कुछ खास ही महत्त्वपूर्ण हो जाता है। सारे दुकानों में तोड़फोड़ करने का काम एक हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाता है। 14 फ़रवरी के दिन तो उनकी गाज पार्क या लवर्स-प्वाइंट पर डेट पर गए हुए प्रेमी-युगलों पर ही गिर जाती है। बेचारे, हफ्ते भर की मेहनत के बाद ये सोच पाते हैं कि किस तरह इस दिन को मनाएंगे और ऊपर से जब वो दिन आ जाता है तो कोई उन्हें शांति से कुछ घंटे बिताने भी नहीं देता है। कई बार टीवी पर उन्हें पिटते भी देखा है। अपनी संस्कृति के नाम पर हिंसा को अंजाम देने वाले इन दलों के कार्यकर्ता अपने आप को भारतीयता के सबसे बड़े रक्षक समझते हैं। वो हों कुछ भी, मगर उन्हें वैलेंटाइन डे का ही शुक्रगुजार होना चाहिए कि उन्हें कम से कम एक दिन का रोजगार तो मिल ही जाता है। रोजगार तो टीवी न्यूज चैनल वालो को भी मिल जाता है। आलतू-फालतू खबरों में ये खबर भी जुड़ जाती है। दिन भर एक ही न्यूज चलता रह जाता है। कोई भी चैनल लगाएं, आपको एक ही खबर मिलेगी। कोई इस दिन की उत्पत्ति पर रिपोर्ट देता है, कोई इसे मनाने के तरीकों पर। कोई प्रेमी-युगलों से साक्षात्कार लेता है तो कोई उन्हें पिटता हुआ ही दिखाता रहता है। रोजगार तो सच में कईओं को मिल जाता है वैलेंटाइन डे के बहाने।
दूसरों पर हंसना और उनपर व्यंग्य करना तो कोई भी कर सकता है मगर महान वही होता है जो खुद पर हँसे। ये बात बहुत पहले से बुजुर्गों से सुनता आया हूँ। महान मैं भी बनना चाहता हूँ। कौन नहीं चाहता है। महान बनने की ललक सब में होती है, मुझमे भी है। मैं भी हूँ तो इंसान ही। तो कुछ बात अपनी भी बता ही देता हूँ। जहाँ तक मेरा सवाल है, मैं इस दिन पर कुछ खास विश्वास नहीं रखता। आम प्रेमी-युगलों की तरह हमारी जोड़ी में भी हम दो विपरीत ध्रुव के प्राणी हैं। जहाँ मुझे अपने प्यार के दिखावटीपने में कतई रूचि नहीं है, वहीँ हमारी 'वो' हमेशा इसकी प्रत्यक्षता में ही विश्वास रखती हैं। बिना कुछ कहे, कुछ बोले, मन ही मन चाहे कितना भी ख्याल रख लो कोई फर्क नहीं पडेगा, मगर एक बार ऊपर मन से ही सही एक 'I Love You' बोल दो तो सारा जहां तुम्हारा। शिकायत नहीं कर रहा। कोई शिकायत है ही नहीं, ये तो प्यार का दस्तूर है। दो विपरीत ध्रुवों के आपस में मिलन से जो प्यार पनपता है उसमे इस तरह के वैचारिक मतभेद तो आते ही रहते हैं। हमारी जिन्दगी में भी कई मतभेद हैं। उनमे से ही एक हमारे लिए वैलेंटाइन डे की महत्ता भी है। जहाँ 'उनके' लिए ये बहुत महत्वपूर्ण है, मेरे लिए इसका कोई महत्व नहीं। अरे हम तो 365 दिन प्यार करने वालों में हैं, हमें किसी एक दिन की जरूरत नहीं अपने प्यार के इज़हार करने के लिए। भारतीयता पर पूरा विश्वास है हमें। हमने कभी 'हीर जयंती' या 'राँझा दिवस' नहीं मनाया। कभी सोनी या महिवाल की पुण्य तिथि भी नहीं मनाई। हमने तो इन्हें अपने मनों में ही बसाया है, प्यार को इनके नाम से ही हमेशा पवित्र माना है। खैर, कह तो बहुत बड़ी बड़ी बात रहा हूँ कि वैलेंटाइन डे का कोई महत्व नहीं है मेरे लिए, मगर जब 'उनका' ज़िक्र आता है तो हर पीड़ित प्रेमी कि तरह हम भी न चाहते हुए ही सही, शौक से ही मनाते हैं इस पर्व को। साल भर का हमारा निकम्मापन आखिर खत्म हो ही जाता है इस दिन। ऊपर से मेरा तो जन्मदिन भी है। फायदा तो हमें ही हो जाता है। अच्छे-अच्छे पकवान मिल जाते हैं उनके हाथों से बने हुए। हमारा तोहफा तो यही होता है। रोज़गार भी मिल जाता है और साथ में मेहनताना भी। स्वागत तो सच में होना चाहिए वैलेंटाइन डे का।
5 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 13.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
धन्यवाद मनोज जी! आभार!
achhhi prastuti hai....
पूरी प्रस्तुति अच्छी है ...... धन्यवाद .......
are sahi yar,but v-day celebration me humlog ko party dena mat bhoolna
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