आज यूँही ब्लॉग के समंदर में तैरते हुए इस ब्लॉग पर नजर पड़ गयी। नीतीश कुमार के बिहार, बिहार के विकास, पत्रकारों की भूमिका इत्यादि पर एस एन विनोद साहब ने बड़ी बड़ी बातें लिखी हैं। इस आलेख को पढ़कर समझ नहीं आ रहा है कि क्या प्रतिक्रिया दूं। हसूँ या रोऊँ समझ नहीं आ रहा। अपने आपको वरिष्ठ बताने वाले पत्रकार क्या क्या कर सकते हैं ये सोचकर अजीब लग रहा है। खैर, पढ़िए इस आलेख को इस लिंक पर क्लिक करके और बताइए कि मेरी परतिक्रिया जो मैंने लिखी है आज इस ब्लॉग पर वो सही है या गलत। बताइयेगा जरूर, इंतज़ार में हूँ!!!
नागपुर में बैठे-बैठे अपने किसी दोस्त की बात को मानकर बिहार के बारे में कोई छवि बना लेना मेरे हिसाब से सही नहीं है। विनोद जी के जिस मित्र का एक वरिष्ठ पत्रकार होना वो बता रहे हैं, उनकी बात की सच्चाई का प्रमाण क्या है? पत्रकारिता के जिस समाज को विनोद जी और उनके तथाकथित वरिष्ठ पत्रकार मित्र बिका हुआ और झूठा बता रहे हैं, वो शायद ये भूल गए हैं कि वो खुद भी उसी समाज से आते हैं। विनोद जी और उनके मित्र ने बिहारी पत्रकारों को नीतीश कुमार के हाथों बिका हुआ बता दिया और हम विश्वास कर लेते हैं। मैं विनोद जी और उनके मित्र को लालू यादव के हाथों बिका हुआ बताता हूँ, क्या आप मेरा विश्वास करेंगे? आप करें या न करें, इसका फैसला इस टिप्पणी को पढ़कर या मुझसे फ़ोन पर बात करके नही लिया जा सकता। हकीकत देखनी है तो आइये बिहार और देखिये। 5 साल पहले का बिहार और आज के बिहार में अंतर है। मैं पटना का हूँ और अभी अभी मैं रात के 1 बजे , 35 किलोमीटर की दूरी तय करके घर आ रहा हूँ। इस दूरी को तय करने में मुझे डेढ़ घंटे लगे। 5 साल पहले भी डेढ़ घंटे ही लगते थे मगर कारण अलग था। पहले सड़क में गड्ढे ही गड्ढे थे जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ती थी। आज सड़क पर रात के 1 बजे भी ट्रैफिक रहता है जिसके कारण गाड़ी रफ़्तार नहीं पकड़ पाती। क़ानून व्यवस्था में सुधार की इससे बड़ी मिसाल शायद आपको कहीं और न मिले।
किसी मित्र के बारे में झूठी अफवाह फैलाता हूँ मित्रों के बीच में कि उसकी शादी होने वाली है तो दो दिन के बाद मुझे ही कुछ और मित्र लड़की का नाम-गाँव इत्यादि भी बता देते हैं। बात निकलती है तो सच में दूर तलक जाती है। मेरी कही बातों में मिर्च-मसाले लगाकर दो दिन के बाद मुझे ही सनसनीखेज खबर के रूप में बताया जाता है। ये है हकीकत इंसानी मानसिकता की। मैं किसी को कुछ बोलूँगा वो उसी बात को किसी और से कुछ बोलेगा और आप तक पहुँचते-पहुँचते राम श्याम बन जाता है।
बिहार की ऐसी छवि पूरे देश में इन गुजरे हुए 15 सालों में बन चुकी है कि इसे 5 साल में बदल डालना किसी के बूते की बात नहीं। धीरे-धीरे ये स्वयं बदलेगा मगर इसमें सबसे बड़े बाधे ये लोग हैं जो ऐसी उलूल-जुलूल बातें फैलाते हैं। समय दीजिये बिहार को और देखिये ये कैसे बदलता है। विकास दर की स्थिति में बिहार भारत में सिर्फ गुजरात से पीछे दुसरे नंबर पर है। ये साक्ष्य आपको दिखाई नहीं देता विनोद साहब, आपको सिर्फ सुनाई देती है टेलीफोन पर आपके मित्र की बात। उस मित्र की बात जिसका नाम तक आप नहीं बताते, जिसकी प्रमाणिकता पर आप दो शब्द तक नहीं लिखते। और ऐसे किसी शख्श की एक बात पर अपने ही पूरे समाज को भ्रष्ट, चोर, बिका हुआ और न जाने क्या क्या बता देते हैं। थोडा शर्म कीजिये कम-से-कम अपने पत्रकारिता समाज के लिए।
विनोद जी से एक आग्रह है कि किसी से सुनी बात पर इतनी बड़ी छवि बना लेने से पहले तथ्यों को थोडा परख लें। आइये बिहार, देखिये इसे। 15 साल से गर्त में जा रहे बिहार को आज ज़मीन पर आते हुए देखिये। नितीश अगले 5 सालों के लिए आयेंगे या नहीं मालूम नहीं, मगर इतना जरूर है कि हर पढ़ा-लिखा बिहारी यही चाहता है। ये सच्चाई है। मैं पत्रकार नहीं, इसलिए इसे बिहारी पत्रकारों की सफाई मत समझिएगा। मैं विद्यार्थी हूँ MBBS का, आम नागरिक हूँ बिहार का और लिख भी रहा हूँ इसी हैसियत से। कम से कम किसी बिहारी का दिल न दुखाइए!!!
4 comments:
इन झूठे मक्कार पत्रकारों की बात कोई नहीं सुनता | जिस अख़बार में काम करते हैं, वहाँ भी इनकी कोई इज्ज़त नहीं होती |
सच क्या है, यह हम आप पूरी तरह से जानते हैं| रात में आना जाना अब आम है| पहले की तरह अपहरण नहीं होते, और न ही रंगदारी मांगी जाती है| रैली रैला अब अतीत हो चुका है|
जो इन अनपढ़ पत्रकार की बात को यकीन कर लेते हैं, वह अपने आप में महान हैं|
दिल्ली की आबो हवा में पला हुआ हूं. पर बिहार मेरा प्रदेश रहा है। दिल्ली मेरी रगो में बहता है अब। या कहूं सारा देश। बिहार को किसी के सर्टिफिकेट की जरूरत नहीं है भाई मेरे। मुझे हैरत है कि विनोद जी जैसे पत्रकार भी किसी की कही बात पर ही भरोसा कर रहे हैं. खुद अपनी आंखो से देखे बिना....
मैं आज ही लौटा हूं बिहार से। पहले पटना से अपने गांव (वाया महुआ - समस्ती पुर) जाने में हमें छह से आठ घंटे लग जाया करते थे, इस बार सिर्फ़ दो घंटे लगे।
पिछली बार हम शाम होने से पहले हर हाल में पहुंच जाना चहते थे। इस बार हम खिली चांदनी में धूल भरी सड़कॊं पर लुत्फ़ उठाते हुए देर शाम ढले (दस बजे) पहुंचे।
शिक्षा -- गांव की लड़कियां सायकल से घर से तीन कोस दूर के विद्यालय में पढने जा रही थी।
गांव मे सारवजनिक जल निकास के लिए नाला बन रहा था।
पार्दर्शिता का यह आलम कि उस नाले से संबंधित सारी जानकारी एक बोर्ड पर लिखी थी, आरंभ तिथि, समाप्ति तिथि, लागत, दूरी, आदि-आदि...
और बताऊं क्या?
भाई जिस पत्रकार के बारे में आप बात कर रहे हैं वह किसी पूर्वाग्रह से ग्रसित है या फिर ... छोड़िए...।
पिछले तीस सालों में बिहार का इतना विकास नहीं देखा।
अंशुमन जी,
बेहद ह्रदय विदारक मुद्दा उठाया था मैंने...पर विडम्बना देखिये बहुत कम लोगो ने प्रतिक्रिया दी और नहीं तो कुछ अनुसरणकर्ता मेरे ब्लॉग से अपना नाम निकल लिए..पर आपने अपने ब्लॉग पर भी इस मुद्दे को उठा कर इस मुहीम में बल दिया..इस साथ के लिए धन्यवाद..
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