
फ़ूटबाल विश्व कप ख़त्म हो चुका है। 82 दिनों के बाद इस साल का दूसरा सबसे बड़ा खेलों का मुकाबला शुरू होने वाला है। इस बार भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन अक्टूबर में होने जा रहा है। अफ्रीका की सफलता के बाद दुनिया आँखें खोले भारत की तरफ देख रही है। हालांकि राष्ट्रमंडल खेल फ़ूटबाल विश्व कप के मुकाबले थोडा कमजोर पड़ जाता है मगर फिर भी पूरे विश्व की न सही, कम से कम, आधे विश्व की नज़रें तो जरूर रहेंगी भारत पर। ऐसे में एक डर मन के अन्दर घर कर गया है। दक्षिण अफ्रीका की अद्वितीय सफलता के बाद अब हर मामले में भारत की तुलना उससे की जाएगी। जिस देश में सामाजिक भेदभाव के खिलाफ जंग एक भारतीय, गाँधी, ने छेड़ी थी, आज वही देश भारत को ऐसी टक्कर दे रहा है। और जिस प्रकार की तैयारियां चल रही हैं, उस हिसाब से तो ऐसा पूर्वानुमान लगाना कतई गलत नहीं होगा कि गाँधी का देश उन्हीं के अनुयायी मंडेला के देश से हार जायेगा।
खेलों की तैयारी के नाम पर न जाने कितने पैसे बहाए जा चुके हैं और फिर भी अभी तक काम पूरा न हो सका है। दिल्ली सरकार समय पर काम ख़त्म कर लेने का आश्वाशन कई बार दे चुकी है। केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रहा है ऐसे आश्वाशन देने में, मगर सच्चाई आये दिन समाचार चैनलों पार आती ही रहती हैं। जब भी कोई खुलासा होता है तो केंद्र सरकार दिल्ली सरकार पर दोष मढ़ती है और दिल्ली सरकार भारतीय ओलम्पिक संघ पर। ऍम एस गिल, शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी के इस आपसी झगड़ों में, डर लगता है, कहीं भारत का आत्मसम्मान न दावं पर लग जाए। शीला दीक्षित लगातार तीसरी बार चुनकर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी की जैसी हालत है उस हिसाब से शीला दीक्षित का चौथी बार चुन कर आना भी पक्का ही लगता है बशर्ते वो कांग्रेस हाईकमान के सामने 'जय सोनिया, जय राहुल' का उदघोष करती रहें। ऐसे में कहीं शीला की दिल्ली ऐन मौके पर गच्चा न खा जाये। एक डर लगता है, जहां अफ्रीका के लिए शकीरा ने वक्का-वक्का किया, वहीँ दिल्ली के लिए शीला हक्का-बक्का न कर डालें!!!
No comments:
Post a Comment