Monday, July 12, 2010

शकीरा का वक्का-वक्का, शीला का हक्का-बक्का न बन जाए!

अभी कल रात ही दुनिया का सबसे बड़ा मेला ख़त्म हुआ। फुटबाल विश्व कप का रंगारंग समापन कल रात स्पेन की जीत के साथ हो गया। एक महीने से ऊपर चले इस मेले ने पूरे विश्व को खूब झुमाया। आज जब विश्व कप ख़त्म हो चुका है तो शायद एक महीने के बाद रात में चैन से बिना किसी मैच की चिंता के सो पाऊंगा। सोचता हूँ तो महसूस करता हूँ कि एक अजीब सी बेरोजगारी आ गयी। सुबह उठकर पिछले दिन के मैच के बारे में सोचना, आगे आने वाले मैच के लिए पूर्वानुमान लगाना और रात में बैठ कर मैच देखना, एक महीने कैसे बीत गए पता नहीं चला। आज पूरी दुनिया पिछले महीने के ऐतिहासिक अनुभव के बारे में ही बात कर रही है। हर तरफ स्पेन की पहली विश्व कप सफलता सुर्खियाँ बटोर रही है, होलैंड के लिए हर तरफ आह निकल रही है। बड़ी बड़ी टीमों की असफलताएं अपना कारण ढूंढ रही हैं, वहीँ, बड़े बड़े सितारे, जो यहाँ न चल सके, अपनी किस्मत पर रो रहे हैं। शकीरा का गीत हर होठ पर गुनगुनाया जा रहा है तो पौल बाबा अचानक हीरो बनकर उभर आये हैं। इन सब के साथ एक बात और है जिसने दुनिया को हिला कर रख दिया है। ऐसी बड़ी प्रतियोगिता का आयोजन पहली बार अफ़्रीकी सरजमीं पर हुआ और बस क्या हुआ!!!
दक्षिण अफ्रीका को जब इस महाकुम्भ का आयोजन सौंपा गया था तब हर ओर इसे लेकर एक अनिश्चितता ने घर बनाया था। फ़ूटबाल विश्व कप पहली बार अफ़्रीकी महादेश में खेला जाने वाला था। अफ्रीका की छवि आज भी दुनिया में गरीबी, बीमारी और आतंरिक कलहों से जूझते देशों की ही है। ऐसी छवि को बदलने का अफ्रीका के लिए इससे बढ़िया मौका शायद दुबारा नहीं मिल पाता। आज जब विश्व कप संपन्न हो चुका है तो अफ्रीका गूँज-गूँज कर इस सफल आयोजन की गाथा पूरे विश्व को सुना रहा है। उसकी क्षमता पर प्रश्न उठाने वाली हर ताकत आज उसके सामने नतमस्तक है। अफ्रीका को ताकत न समझने वालों के मुंह पर एक जोरदार तमाचा मारा है इस विश्व कप ने। आज पूरा विश्व भले स्पेन की जीत का गुणगान कर रहा हो मगर हर तरफ हर आँख में अफ्रीका के लिए इज्ज़त है।
फ़ूटबाल विश्व कप ख़त्म हो चुका है। 82 दिनों के बाद इस साल का दूसरा सबसे बड़ा खेलों का मुकाबला शुरू होने वाला है। इस बार भारत में राष्ट्रमंडल खेलों का आयोजन अक्टूबर में होने जा रहा है। अफ्रीका की सफलता के बाद दुनिया आँखें खोले भारत की तरफ देख रही है। हालांकि राष्ट्रमंडल खेल फ़ूटबाल विश्व कप के मुकाबले थोडा कमजोर पड़ जाता है मगर फिर भी पूरे विश्व की न सही, कम से कम, आधे विश्व की नज़रें तो जरूर रहेंगी भारत पर। ऐसे में एक डर मन के अन्दर घर कर गया है। दक्षिण अफ्रीका की अद्वितीय सफलता के बाद अब हर मामले में भारत की तुलना उससे की जाएगी। जिस देश में सामाजिक भेदभाव के खिलाफ जंग एक भारतीय, गाँधी, ने छेड़ी थी, आज वही देश भारत को ऐसी टक्कर दे रहा है। और जिस प्रकार की तैयारियां चल रही हैं, उस हिसाब से तो ऐसा पूर्वानुमान लगाना कतई गलत नहीं होगा कि गाँधी का देश उन्हीं के अनुयायी मंडेला के देश से हार जायेगा।
खेलों की तैयारी के नाम पर न जाने कितने पैसे बहाए जा चुके हैं और फिर भी अभी तक काम पूरा न हो सका है। दिल्ली सरकार समय पर काम ख़त्म कर लेने का आश्वाशन कई बार दे चुकी है। केंद्र सरकार भी पीछे नहीं रहा है ऐसे आश्वाशन देने में, मगर सच्चाई आये दिन समाचार चैनलों पार आती ही रहती हैं। जब भी कोई खुलासा होता है तो केंद्र सरकार दिल्ली सरकार पर दोष मढ़ती है और दिल्ली सरकार भारतीय ओलम्पिक संघ पर। ऍम एस गिल, शीला दीक्षित और सुरेश कलमाड़ी के इस आपसी झगड़ों में, डर लगता है, कहीं भारत का आत्मसम्मान न दावं पर लग जाए। शीला दीक्षित लगातार तीसरी बार चुनकर दिल्ली की मुख्यमंत्री बनी हैं। मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी की जैसी हालत है उस हिसाब से शीला दीक्षित का चौथी बार चुन कर आना भी पक्का ही लगता है बशर्ते वो कांग्रेस हाईकमान के सामने 'जय सोनिया, जय राहुल' का उदघोष करती रहें। ऐसे में कहीं शीला की दिल्ली ऐन मौके पर गच्चा न खा जाये। एक डर लगता है, जहां अफ्रीका के लिए शकीरा ने वक्का-वक्का किया, वहीँ दिल्ली के लिए शीला हक्का-बक्का न कर डालें!!!

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