Wednesday, October 20, 2010
तुम्हारे साथ!
उस शाम, राह पर
तुम्हारे साथ,
नज़रें झुकाकर,
ज़माने से बचाकर
चल रहा था.
कोई बात नहीं,
कुछ ख़ास नहीं.
बस चुपचाप.
सिर्फ एक अहसास,
सिर्फ दिल की एक आवाज़,
कि पकड़ लूं तुम्हारा हाथ.
कि ले चलूँ कहीं ज़माने से दूर.
वहां जहाँ कोई नज़र न हो
वहाँ जहाँ किसी का कोई डर न हो.
पर,
झुकी नज़रों का वो डर
मन का वो करना हमेशा 'किन्तु, अपितु, पर'.
हिम्मत हुई, सोचा
कब तक नज़रें झुकाकर
ज़माने की नज़रों को नज़रअंदाज करूंगा,
आखिर कब उस डर को भूलकर
अपने दिल के लिए इन्साफ करूँगा.
दिल ने एक आवाज़ दिया,
आवाज़ से ज्यादा धिक्कार दिया.
हिम्मत हुई, हाथ बढाया,
नज़रों को उठाया
ज़माने की नज़रों से नज़र मिलाया.
और फिर,
चिढाती हुई वो दोस्तों की ऑंखें,
सवाल पूछती वो बुजुर्गों की आँखें,
वो लोगों की नज़र,
उन नज़रों का डर,
वो ज़माने के पत्थर,
अपने घर के शीशे,
तुम्हारे परिवार की इज्ज़त,
अपने माँ-बाप की बेईज्ज़ती का डर.
वो सबकुछ,
बढ़ते हुए हाथ को फिर वापस कर लिया,
बस सबकुछ चुपचाप सोचता रहा,
मन में सब कुछ दबाकर
तुम्हारे साथ बस चलता रहा, चलता रहा.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
11 comments:
बहुत अच्छी प्रस्तुति संवेदनशील हृदयस्पर्शी मन के भावों को बहुत गहराई से लिखा है
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है
दिल के भावो को अच्छे से उकेरा है।
धन्यवाद! संजय जी और वंदना जी!
@संजय जी: दो ख्याल मन में आ गए,
कागज़ पर उकेर दिया,
लोगों ने उसे कविता कह दिया!!
apni baaton ko panno pe utarna bhot achhe se jaante ho...tumari ish kavita mein b baki k kavitayein ki tarah hi bhawnayo ka pradarshan hua hai.....vru gud poem.
bahut khub....pyar bhare dil ki tamannaon ko tumne bkhubi pesh kiya hai... Pyar wo ehsaas hai jo jindagi mein ek saath kai parivartan lata hai... Responsibility ka bhav, kisi kaam ko kisi ke liye samarpit karne ka bhav, apne kaam ko dugni sfurti aur lagan se karne ka bhav, kuch kar ke uske saamne prove karne ka bhav...
Mujhe atyant khushi hai tumhari ye panktiya hamein nayi rah dikha rahi hai,
With love
Vishal
Thanks Maheshwar and Vishal!!!
wah.........banhiya hai.......
really appreciate the way u pen down your feelings:)
thanks neha!!!
sunder...utna he kha jo mn ma tha...bilkul sidga-sidha...bina kise banawat ke...kavita... khani ya lekh sa alag vidha ha...eslia ya dekhnabhi jaruri ha ke kavita yatharth aur kalpana ke kitna rango ke sath apni bat khti ha...
photo dalna ma thodi aur mehnat kro to acha hoga...abhi sunder lg rha ha...ya bhut sunder bhi ho skta ha...
Post a Comment