Tuesday, February 24, 2015

कुछ पुराने पन्नों से


कुछ साल पहले डायरी लिखने की शुरुआत की थी। पहले हर रात लिखा करता था। फिर कुछ अंतराल आने लगे। अंत में सब बंद हो गया। शुरुआत क्यों हुई थी और अंत क्यों हुआ इसके बारे में कभी गहरे विश्लेषण की जरुरत है। बस लिखा करता था। लिखने का शौख था शायद इसलिए या शायद कुछ ऐसी बातें होती थी जो किसी से साझा नहीं कर सकता था इसलिए। जो भी हो, कभी कभी डायरी के उन पन्नों को मिस जरूर करता हूँ। कभी मौका मिलता है तो उन पुराने पन्नों को पलट भी लेता हूँ। कभी हंसी आती है पढ़कर, कभी रोना। जो भी हो पुरानी यादें ताज़ा हो जाती हैं। कभी कभी तो ऐसी बातें भी याद आती हैं जिसे समय ने एक गहरी परत के नीचे दफ़ना दिया था।

आज हॉस्टल के अपने कमरे में अकेले बैठे कुछ पुराने कॉपी के पन्ने पलट रहा था। एक छोटा सा कागज़ का टुकड़ा मिला। 2-2.5 साल पुराना। कुछ लिखा हुआ। मन के किसी ख्याल को शायद अपने अकेलेपन में कागज़ पर उतरा होऊंगा। याद करने की कोशिश की। बहुत कुछ याद आया। हर किसी की ज़िन्दगी में कई मोड़ आते हैं। वो मेरी ज़िन्दगी का एक ख़राब समय चल रहा था। 6 साल साथ बिताने के बाद पहली बार हमलोग थोड़े दूर हुए थे। भौगोलिक दूरी का असर कहीं न कहीं हमारे दिलों की दूरी पर भी पड़ा था। झगड़े होते थे। बातें कम होती थीं। भावनाओं पर सवाल उठते थे। और जब उन सवालों से ऊब जाता था तो बस खामोशियाँ रहती थी। ख़ामोशी से और झगड़े होते थे। बातें और काम होती थीं। और सवाल उठते थे, जवाब में और खामोशियाँ आती थी। उसी कागज़ के पन्ने को आज यहाँ साझा कर रहा हूँ। बस यूँही, पुराने दिनों की याद में। कुछ पुराने पन्नों से…


झुकी हुई सी उसकी नज़र सवाल दिल से पूछती है,
मेरी खामोशियों में वो अपने जवाब ढूँढा करती है,
इस ख़ामोशी को मेरी बेरुखी मत समझ लेना तुम,
मेरे दिल का हाल बयां ये ख़ामोशी करती है।

साथ तेरे ही शुरू किया था मैंने ये सफर
मंज़िल भी अपनी आस-पास ही थी कहीं,
फिर क्यों बढ़ गयी दिलों की ये दूरी,
हर वक़्त इसी सोच में डूबी ये ख़ामोशी रहती है।

साथ देने का वादा किया था तुमसे इक बार
आज खामोश हूँ, ये न समझना कि भूल गया
ये मेरी बेवफाई नहीं कि आज कुछ बोल नहीं रहा
इस वादे को निभाने की शर्त बयां ये ख़ामोशी करती है।