Saturday, July 10, 2010

तस्वीर जिसने फोटोग्राफर की जान ले ली मगर हमारी आँखें न खोल सकीं

कुछ महीनों पहले न्यूज़ चैनलों पर एक विडिओ फुटिंग आई थी। एक सब-इंस्पेक्टर को सड़क दुर्घटना के बाद सड़क पर ही पड़े पड़े तड़पते हुए और फिर मरते हुए दिखलाया गया था।



इस विडिओ के आने के बाद कई तरह की बहस छिड़ी थी मीडिया में। क्या कैमेरामैन का इस तरह से किसी के मरने तक उसका फुटेज निकालना जायज़ था? क्या उसे उस आदमी की सहायता नहीं करनी चाहिए थी? ऐसे कई सवाल उठे थे उस वक़्त आज की पत्रकारिता को लेकर। उसी समय एक और तस्वीर की बात भी उठी थी। 1993 में ली गयी सूडान की उस तस्वीर में भूख से अधमरी एक बच्ची को कैंप जाते वक़्त थोडा रुककर दो साँसें लेते दिखाया गया था जब उसके बगल में एक गिद्ध आकर बैठ गया था। केविन कार्टर नाम के उस फोटोग्राफर को उस तस्वीर के लिए सम्मानित किया गया मगर मानवता के नाते कई सवाल भी उनके ऊपर उठाये गए थे। अफ्रीका के जंगलों और गरीब देशों में, जहां ऐसी बातें आम थी, उन्होंने भूखमरी और गरीबी की ऐसी कई तस्वीरें खिची थी। बाद में इन्ही तस्वीरों के वेदना को वो खुद सहन नहीं कर पाए और उन्होंने आत्महत्या कर ली। कुछ महीनों पहले जब इस तस्वीर का ज़िक्र हमारी मीडिया कर रही थी उसी समय से इसे देखने की जिज्ञासा मन में थी। आज वो तस्वीर मिली है। आपमें से कईयों ने देखी भी होगी मगर फिर भी यहाँ लगा रहा हूँ उस मन को दहला देने वाली तस्वीर को।
इन बातों को यहाँ पर दिखाकर एक बार फिर उस बहस को नहीं छेड़ना चाहता हूँ न ही उसमे अपना कोई योगदान देना चाहता हूँ। शायद उस कैमेरामैन और इस फोटोग्राफर ने जो बात उठानी चाही थी वो इस बहस के तले कहीं दब कर रह गयी। शायद उन्होंने ये तस्वीरें हमारे पास लाने की कवायद सिर्फ इसलिए की हो ताकि हमारी आँखें खुल सकें और हम आगे ऐसी घटनाओं से बचें। एक सामाजिक जागरुकता को बढ़ावा देने के लिए ली गयीं ये तस्वीरें अपना काम न कर सकीं। सड़क पर आज भी लोग मर रहे हैं और हम आराम से अपनी AC गाडी में बैठे शीशे उठाये हुए बगल से निकल जाते हैं। आज भी अफ्रीका के देशों में बच्चे भूखमरी की भेंट चढ़ रहे हैं, आज भी उन्हें चील और गिद्ध अपना शिकार बना रहे हैं। वक़्त बीत चुका है, ये तस्वीरें इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुकी हैं मगर हमने कितनी आसानी से अपने कर्त्तव्य को ठेंगा दिखाकर इन तस्वीरों के औचित्य पर सवाल खड़ा कर दिया है। मैं इन फोटोग्राफरों के कृत्य को न्यायसंगत नहीं कह रहा। निश्चित ही उन्हें तस्वीर खीचने के साथ साथ इन जान को बचाने का भी जतन करना चाहिए था। मगर इन तस्वीरों को सिर्फ इस गलती के लिए बिलकुल नकार देना शायद हमारी भूल ही है।

2 comments:

Anand Madhav said...

There's a conflict between the person's duty as a responsible citizen and rights as a journalist..Everyone is free to make their own choices but at the end of it all..we should have a human face..

Nicely written..I wish if i could comment in hindi here..

Aashu said...

@Anand: Rightly said. A human face must be the ultimate pursuit!! Thanks for coming here!