Monday, October 25, 2010
जीवन का संघर्ष!
ज़िन्दगी के इस सफ़र में
कई मोड़ हैं आते.
कभी सूरज की रोशनी
तो कभी अमावस की रातें.
एक ऐसे ही मोड़ पर
आज खड़ा हूँ मैं,
एक लम्बी सी सुरंग के
बीचो-बीच पड़ा हूँ मैं.
ज़िन्दगी के दो रौशन भागों को
जोडती ये लम्बी सुरंग,
जीवन की रंगीनियों के बीच
ये अँधेरी बदरंग सुरंग.
कल की मस्ती को पीछे छोड़
कल की जिम्मेदारी तक पहुँचाती ये सुरंग,
जीवन के संघर्ष से
पहचान कराती ये सुरंग.
संघर्ष, माँ-बाप के सपनों को पूरा करने का,
संघर्ष, अपनी आकांक्षाओं को पा लेने का,
संघर्ष, समाज की अपेक्षाओं पर खड़ा उतरने का,
संघर्ष, अपने आप को साबित करने का.
चलता जा रहा हूँ
इस एकतरफा सुरंग में,
शायद अकेला हूँ,
शायद कुछ और लोग भी हैं.
घुप्प अँधेरे में
कोई दिखाई नहीं देता
कोई आकृति नहीं , कोई काया नहीं
साथ चलने को, खुद का साया भी नहीं.
बढ़ते रहने की कोशिश करता हूँ
मगर कभी रूक भी जाता हूँ.
पिछली छोर की रौशनी की याद
क़दमों को रोक देती हैं
पीछे लौटना चाहता हूँ,
अपने संघर्ष से हार जाता हूँ.
फिर ख्याल आता है,
सुरंग के अंत का
आने वाले छोर पर रौशनी का,
एक संकल्प करता हूँ,
संघर्ष की फिर शुरुआत करता हूँ
बढ़ता जाता हूँ, चलता जाता हूँ.
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8 comments:
अहसासों का बहुत अच्छा संयोजन है ॰॰॰॰॰॰ दिल को छूती हैं पंक्तियां ॰॰॰॰ आपकी रचना की तारीफ को शब्दों के धागों में पिरोना मेरे लिये संभव नहीं
मैं क्या बोलूँ अब....अपने निःशब्द कर दिया है..... बहुत ही सुंदर कविता.
@संजय जी: बहुत बहुत धन्यवाद!
मंज़िल की तरफ़ बढा पहला क़दम ही सफलता की गारंटी है। शैलेन्द्र जी कि एक रचना याद आ गई
"तो ज़िन्दा है तू ज़िन्दगी की जीत में यक़ीन कर
अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला ज़मीन पर"
समकालीन डोगरी साहित्य के प्रथम महत्वपूर्ण हस्ताक्षर : श्री नरेन्द्र खजुरिया
@मनोज जी: प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद. आते रहिये ब्लॉग पर.... अच्छा लगता है.........पिछले कई पोस्ट पर आपकी टिपण्णी की कमी खली! धन्यवाद!
bahut sunder rachna.
आशु जी !
अच्छी कविता हुई है ! लक्ष्य तक पहुँचने कि प्रत्याशा,उस के पीछे के संघर्ष और द्वन्द का चित्रण करती अच्छी रचना !
बधाई!
Too good...:)
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