Friday, November 26, 2010

फिर यादें होती हैं, उदासी नहीं होती!


कमरे के कोने में बैठा
शायद घंटों बीत गए थे,
एक और शाम यूँही ढल गयी थी
शायद बाहर अँधेरा हो आया था.

कोई फर्क नहीं पड़ता,
बाहर के अँधेरे से,
अब डर नहीं लगता.
आदत सी हो गयी है.
आखिर मन में अँधेरा ही तो है.

मन में अँधेरा?
सचमुच?
नहीं, अँधेरे की आदत नहीं लगी
बस अब महसूस नहीं होता,
यादों के उजाले में, अब,
अँधेरा पता ही नहीं चलता.

एक अकेलापन है.
है क्या?
कमरे के कोने में
अकेला ही तो बैठा हूँ.
सच क्या?
नहीं, यादों के भवर में
कई लोग हैं,
साथ घूम रहे हैं,
यूँही झूम रहे हैं.

साथ वो भी बैठी थी शायद,
बगल में तो नहीं थी,
हाँ, ख्यालों के एक कोने में होगी,
वही तो होती है हमेशा.
कुछ बोलती है
मेरी यादों के बारे में,
कुछ पूछती है,
इन ख्यालों के बारे में.

वो बोलती है,
यादों की उड़ान
न जाने कहा ले जाती है,
टूटे हुए तारों को अचानक
फिर जोड़े जाती है.
तार जुड़ने की खुशियाँ कम,
टूटे होने की पीड़ा अधिक दे जाती है,
तनहा तो नहीं छोड़ती,
पर दुखी छोड़े जाती है.

वो पूछती है,
क्यूँ उदास होते हो पुरानी बातों में,
क्यूँ डूबे रहते हो उन यादों में?
जो खुशियाँ नहीं देती
क्या फायदा उन यादों का,
मन उदास हो जिनसे
क्यूँ बात करना उन ख्यालों का?

मैं कहता हूँ,
यादों से दूर न करो,
उन ख्यालों से दूर न करो.
आज हमेशा आज नहीं होता,
हर कोई हमेशा पास नहीं होता.
दोस्त रहते हैं मगर दोस्ती नहीं रहती,
दिल होता है मगर दिल्लगी नहीं होती.
हाँ, सच ही तो कहते हैं लोग,
ज़िन्दगी हर वक़्त एक जैसी नहीं होती.

लोग मिलते हैं मगर,
बातों की फुर्सत नहीं होती,
बस पुरानी डायरी के कुछ पन्ने होते हैं,
फिर यादें होती हैं, उदासी नहीं होती!

 

19 comments:

Anamikaghatak said...

bahut sundar prastuti

Aashu said...

@ana: Thanks!

ZEAL said...

हाँ, सच ही तो कहते हैं लोग,
ज़िन्दगी हर वक़्त एक जैसी नहीं होती.

लोग मिलते हैं मगर,
बातों की फुर्सत नहीं होती,
बस पुरानी डायरी के कुछ पन्ने होते हैं,
फिर यादें होती हैं, उदासी नहीं होती!...

Ashu..

You gave words to my thoughts. People change with time. They rarely have sentiments for friends and folks. All are so mechanical .

Thanks for this wonderful creation .

केवल राम said...

कोई फर्क नहीं पड़ता,
बाहर के अँधेरे से,
अब डर नहीं लगता.
आदत सी हो गयी है.
आखिर मन में अँधेरा ही तो है.
इस अँधेरे के आगे सारे प्रकाश फीके हैं ...
बहुत सुंदर प्रस्तुति
चलते -चलते पर आपका स्वागत है

आशीष मिश्रा said...

बहोत ही सुन्दर प्रस्तुति ..........

डॉ. मोनिका शर्मा said...

लोग मिलते हैं मगर,
बातों की फुर्सत नहीं होती,
बस पुरानी डायरी के कुछ पन्ने होते हैं,
फिर यादें होती हैं, उदासी नहीं होती!

बेहतरीन...... हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ ....

प्रेम सरोवर said...

Bahut hi sundar tarike se prastuti ki gayi hai.Plz. visit my post.

अनुपमा पाठक said...

बीते पल यादों में सज कर खुशियाँ ही देते हैं!
सुन्दर!

Dorothy said...

नहीं, अँधेरे की आदत नहीं लगी
बस अब महसूस नहीं होता,
यादों के उजाले में, अब,
अँधेरा पता ही नहीं चलता.

गहन संवेदनाओं की बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार.
सादर
डोरोथी.

Aashu said...

Thanks everybody!

Anupama Tripathi said...

अतीत की यादें ......!!
सचमुच सुमधुर होती हैं .
सुंदर अभिव्यक्ति
बधाई एवं शुभकामनाएं
A good endeavour indeed...!!

दिगम्बर नासवा said...

मैं कहता हूँ,
यादों से दूर न करो,
उन ख्यालों से दूर न करो...

Achhaa likha hai bahut hi .. yaden to kabhi nahi jaati dil se ...

वाणी गीत said...

सही कहते हैं लोंग जिन्दगी हर वक़्त एक जैसी नहीं होती ....
जब ये जान लिया तो उदासी कैसी ...!

#vpsinghrajput said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

देवेन्द्र पाण्डेय said...

यादें हँसाती हैं यादें रूलाती हैं..यादें ना हो तो जिंदगी नीरस हो जाती है..यही जिंदगी है।

संजय भास्‍कर said...

बेहद मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति. आभार

Aashu said...

Aap sab ko shukriya!

Deepika said...
This comment has been removed by the author.
werewolf said...

awesome :)