दोस्त,
वो बचपन के दिन याद हैं?
मेरे लिए एक नया स्कूल, एक नयी जगह,
कोने में चुपचाप बैठे रहने की मेरी एक ही वजह.
मेरा कोई दोस्त न था वहाँ.
पुराने दोस्तों को पीछे छोड़ आया था,
नए बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था.
जब चाहा था किसी का साथ
तब तुमने ही बढाया था अपना हाथ.
हाँ, दोस्त,
मुझे वो सबकुछ याद है.
वो क्लासरूम की मस्ती,
लंच पीरियड की वो मटरगस्ती,
स्कूल फी जमा करने के बहाने क्लास बंक करना,
स्पोर्टस पीरियड लगवाने के लिए टीचर से जंग करना,
कैंटीन के समोसे की लाइन में मुझे धकेल देना,
और क्लास में पनिशमेंट के लिए मेरी जगह खुद चले जाना.
तुम्ही तो रहते थे हर पल साथ.
हाँ दोस्त,
मुझे सब कुछ है याद.
मगर आज फिर भी तुम पूछते हो, मैं दूंगा न तुम्हारा साथ?
सच्चे दोस्त कभी बदलते नहीं,
जो बदलते हैं वो सच्चे होते नहीं.
मैं जानता हूँ दोस्त तुमने क्या खोया है,
इतनी कच्ची उम्र में ही कितना रोया है.
पिता को खोने के दर्द को मैं ले तो नहीं सकता हूँ
पर उस दर्द को बांटने का जतन तो कर सकता हूँ.
जानता हूँ, उस वक़्त तुम्हारे आंसू पोछने न आ सका
मालूम है मुझे, तुम्हारी दोस्ती का क़र्ज़ न चुका सका.
पर दोस्त,
ज़रा सोचो,
हमने भी तो खोया है किसी अपने दिल के करीब को.
वो 'तुम' जो उस दर्द के मिलने के पहले हुआ करते थे
आज उस दर्द के साए में कहीं खो गए हो,
वो 'तुम' जो कभी मेरे 'हम' का हिस्सा थे
आज कहीं दूर हो गए हो.
पर याद रखना, दोस्त,
अपनी दोस्ती का क़र्ज़ ज़रूर चुकाऊंगा
उस पुराने वाले 'तुम' को कहीं न कहीं खोज कर
अपना वही 'हम' ज़रूर बनाऊंगा.
5 comments:
वाह बेहतरीन!
एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब
आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |
कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
dil se likha hai! bahaut achi lagi ye kavita:)
@neha: main sab kuchh dil se hi karta hoon!
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