21वी सदी की नारी है,
हाँ, चैट कर लेती है.
आपसे, मुझसे,
हर किसी से.
कोई इनमे माँ ढूंढता है,
कोई बहन कोई दोस्त.
कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका.
हर कोई ढूंढता है
इनका एक नया रूप.
इस बात से अनजान
कि वो किसे ढूंढ रही.
अपने आप को चालाक समझती है,
धूर्त है, परिचय अनजाने में दे जाती है.
फिर भी समझ नहीं आता.
गफलत में रहती है,
जब सामने वाला इनका इस्तमाल करता है
ये खुश रहती है
सोचकर के इस्तमाल तो वो कर रही हैं.
पता नहीं खुद को क्या समझती है.
पर इतना जरूर है,
इस्तमाल हो जाने के बाद जब अहसास होता है
तो आँखों में आंसू जरुर आते हैं,
अपनी सच्चाई पता चले न चले
दुहाई जरूर देती है.
दुहाई अपने अबला होने की,
दुहाई मर्दों द्वारा तथाकथित शोषण की,
दुहाई अपनी ऐतिहासिक कमजोरी की.
दुहाई अपने औरत होने की!
11 comments:
ारे वाह बेटा क्या किसी से झगडा मोल लेने का ईरादा है? सच सब को कडवा लगता है इस लिये चुप रहो। लेकिन सब को एक ही नज़र से देखना भी सही नही। हो सकता है वो भी कहीं से सच हो या जिसे देखा नही वो झूठ हो। वैसे अच्छा लिख लेते हो। शुभकामनायें आशीर्वाद।
आशु जी,
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है आपकी भी………………ये दुनिया है और यहाँ सभी तरह के लोग भरे हैं इसलिये ऐसी बातों को निजी तौर पर नही लेना चाहिये…………ये सिर्फ़ कुछ ख्याल होते है और कुछ लोगो की ज़िन्दगी का सच भी…………बाकी सभी की अपनी अपनी सोच होती है।
@निर्मला जी: अब बेटा कह ही दिया है तो प्रणाम भी स्वीकार करियेगा! जी नहीं, मेरा झगडा मोल लेने का कोई इरादा नहीं है. उन्होंने व्यंग्य के रूप में अपनी बात कही थी, उसका व्यंग्यात्मक जवाब ही मैंने भी दिया है. उनकी कविता पढ़कर ये विचार मन में आये. कुछ लिखा, पोस्ट के लायक लगा तो ब्लॉग पर डाल दिया. अगर उनकी कविता को उद्धृत नहीं किया होता तो मेरी बात पूर्णतया अप्रासंगिक लगती इसलिए ऐसा करना पड़ा. बुरा लगा हो तो क्षमा करियेगा मगर कोई झगडा मोलने का कोई इरादा मेरा नहीं था. सराहना के लिए धन्यवाद!
@वंदना जी: निर्मला जी के जवाब में मैंने अपनी बात रख दी है. इसे कतई निजी नहीं ले. मैंने भी नहीं लिया था, बस मन में एक बात आई थी आपकी कविता को पढ़कर इसलिए लिख दिया!
@ आशु जी,
यही लेखन की सफ़लता है जिसमे किसी के लिये कोई मैल ना हो …………बस ख्यालों का ही आदान प्रदान हो्……………शुक्रिया।
4/10
मैंने वो कविता भी देखी है अब आपकी कविता देख रहा हूँ ... सच तो यह है कि मुझे दोनों ही रचना के स्वर सही लग रहे हैं.
आपको सर्वप्रथम वहीँ पर अपनी बात रखनी चाहिए थी. जब उन्होंने उस्ताद को सहन किया तो आपको क्यूँ न करती ? वैसे बरखुदार मैंने वहां पर उस कविता को व्यंग के रूप में ही देखा था और पसंद भी आया था.
मुझे नही पता मैं जो कहता हूँ किस किस को कैसा लगता है क्यों की मैं न कोई लेखक हूँ न ही साहित्यकार.मैं बस वोही लिखता हूँ जो मैंने अपनी जिंदगी में देखा और फील किया.और मैं अंशु बिलकुल सहमत हूँ तुमरे इस कथन से.तुमने आज की generation की लड़कियों के बारे में चर्चा किया है और यह बात हम लोगों से अच्छा कौन जानता? बाकि मेरी क्या सोच है लड़कियां और प्रेम के सन्दर्भ में यह तोह मेरे ब्लॉग में पढ़ ही चुके हो.
@उस्ताद जी: अपनी बात को वहीँ लिखना चाहता था मगर बात बनते बनते ऐसा महसूस हुआ कि एक स्वतंत्र पोस्ट इस विचार पर लिखा जा सकता है., उनके अस्वीकार करने का कोई डर नहीं था. उनके पोस्ट पर कमेन्ट में मैंने अपने इस पोस्ट की लिंक भी दी है. खैर, सराहना के लिए धन्यवाद!
@महेश्वर: हाँ, अपनी पीढ़ी के बारे में हमसे बेहतर कोई नहीं जान सकता. बाकी सब आकलन ही कर सकते हैं, पूरी सच्चाई जानने के लिए हमारे पीढ़ी का होना जरूरी है. खैर, इससे पीढ़ियों की पुरानी लड़ाई फिर शुरू हो जाएगी, इसलिए बात यही पर ख़त्म करता हूँ!
गजब तोड. प्रतिउत्तर में मजा आ गया ।
सुशील बाकलीवाल
ek alag drishtikon hai yah bhi....
अच्छा लगा यह नज़रिया देख कर भी...वो भी पढ़ी मैने.
Post a Comment