Wednesday, January 20, 2016

यह भी बीत जायेगा

घर के आस-पड़ोस में कई प्राणी देखने को मिल जाते हैं। कुछ जो सुबह सुबह अपनी ज़िन्दगी को दो-चार भली बुरी बातें बोलते हुए अपने काम को निकल जाते हैं। परिवार के पेट पालने की जद्दोजहद में दिनभर आने वाले कल की चिंता में अपने खून के साथ अपना आज जलाते हुए शाम को थक-हार कर घर वापस आते हैं। और कल फिर इसी दिनचर्या की चिंता लिए रात में सो जाते हैं। वहीँ उसी समाज में कुछ ऐसे भी प्राणी दिखते हैं जिन्हें ऐसी किसी बात की कोई चिंता नहीं होती। सुबह देर से उठते हैं। टेबल पर खाना परोसा हुआ मिल जाता है। आराम से सुकून की ज़िन्दगी जीते हैं। और रात में चैन की नींद सो जाते हैं। उन्हें किसी चीज की कोई चिंता नहीं करनी होती। उनके लिए चिंता करने के लिए उनके घर में पहले प्रकार के प्राणी मौजूद रहते हैं।

पैसे कमाने वाले बाप के इन बिगड़ैल अशिक्षित अमीरज़ादों की ज़िन्दगी को देखकर कभी कभी ऐसी ईर्ष्या होती है कि खुद पर से भरोसा उठने लगता है। मस्ती भरी ज़िन्दगी जीते हैं। सुन्दर पत्नी मिलती है जो उनके साथ साथ उनके घरवालों का ख्याल रखती है। भविष्य की चिंता में कोई समय बरबाद नहीं जाता। उनके लिए हर दिन सुखमयी होता है। कोई साल कभी खराब नहीं बीतता। या तो अशिक्षित होते हैं या बने रहते हैं जिसका लाभ उन्हें मिलता रहता है। शिक्षा के साथ मिलने वाली तार्किकता उनके पास नहीं होती। तर्क-वितर्क की क्षमता का विकास नहीं होता। उनके साथ कुछ ख़राब हो रहा है ये समझने की बुद्धि नहीं होती उनके पास। इसलिए सबकुछ अच्छा ही होता है। चारों ओर हरियाली रहती है। कहीं कोई दुःख नहीं, सिर्फ खुशियाँ ही खुशियाँ। 

और इधर हमारे जैसे लोग पढ़े-लिखे बेवकूफ बने बैठे होते हैं। हर साँस किसी चिंता के साथ बीतती है। कोई साल कभी अच्छा नहीं निकलता। अच्छी खबर सुनने के लिए मन तरसता रहता है। हर तरफ हार ही मिलती है। कभी कोई सफलता गलती से मिल भी जाये तो भी उसके साथ आगे के लिए असफलताओं का अम्बार लेकर आती है। महात्वाकांक्षी होना शिक्षित होने के साथ उन्हें दहेज़ में मिलता है। और ये महत्त्वाकांक्षाएं अपने सर पर चिंताओं का बोझ उठाए आती हैं। 

कितना अच्छा होता अगर हम भी वैसे ही कोई बिगड़ैल अशिक्षित अमीरज़ादे होते। हमें अफ़सोस नहीं होता कि हमारा पिछला साल इतना ख़राब बीता। हमें इस बात का डर भी नहीं होता कि यह साल भी हमारा वैसा ही निकलेगा। किसी ख़ुशख़बरी के लिए हमें इंतज़ार नहीं करना पड़ता। हम भी अपने जीवन में मगन होते। कोई भागदौड़ नहीं मची रहती। फालतू की बातों पर कभी खून नहीं जलाना पड़ता। 

सोचते रहने की कोई बीमारी सी हो गयी है लगता है। शायद इसीलिए आज अपनी उस शिक्षा को भी धिक् दे रहा हूँ जिसने मेरे अंदर उस तर्क-वितर्क या कुतर्क की क्षमता का विकास किया है। अगर ये नहीं होती तो सोचते रहने की बीमारी भी नहीं होती और इसलिए कभी बुरा सोच ही नहीं पाता। नए साल में कुछ परेशान सा चल रहा हूँ शायद। एक अदद अच्छी खबर के इंतज़ार ने मन को विचलित कर के रख दिया है। बहुत कुछ व्यक्तिगत बातें हैं जो कहना चाहता हूँ मगर किसी से कह नहीं पाता। अपने इष्टजनों की चिंता का कारण नहीं बनना चाहता। कई दिन से इस पोस्ट को टाले जा रहा हूँ। जानता हूँ मेरा ब्लॉग घर वाले भी पढ़ते हैं। मैं नहीं चाहता कि वो ये पढ़ें और मुझे लेकर दुःखी हों। मैं नहीं चाहता कि कोई इसे पढ़े। ये शायद एक फेज भर है। यह भी बीत ही जायेगा। मैं जो हूँ वो शायद ये सही नहीं दर्शा रहा। मैं ऐसा नहीं था। मैं अभी भी शायद ऐसा नहीं हूँ। बस मन में बहुत कुछ भरा था जिसे कहीं निकालना चाह रहा था। ब्लॉग का ये सार्वजनिक मंच शायद इन व्यक्तिगत बातों के लिए सही नहीं है। पर फिर भी इस स्थिति में शायद मुझे इससे अच्छी जगह मिलती भी नहीं। मैं ठीक हूँ। मैं ठीक हो जाऊँगा। यह भी बीत जायेगा।