Saturday, May 24, 2008

दिल चाहता है

ये कविता या यूं कहूँ की ये तुकबंदी कहीं से भी मेरी प्रियतम कविताओं मे नही है मगर फ़िर भी ये मुझे प्रिय है। शायद इसलिए की ये इस ओर मेरा पहला प्रयास है। आजतक मुझे हमेशा ऐसा लगता था कि ये मेरे बस की बात नही कि मैं यूं कोई तुकबंदी करूँ अपितु ये मेरी चाहत जरूर थी कि मैं ऐसा कुछ करूँ। शायद इस बात की मुझे अपने आप को लेकर हीन भावना भी थी कि कोई ऐसा काम है जो मैं बिल्कुल नही कर सकता। मगर अब ऐसा लगता है कि अतिसधारण ही सही मगर मैं इस काबिल हूँ कि कुछ लिख सकूं। शायद शुरुआत ऐसी ही होती है। दुआ करता हूँ कि ये छोटी सी मेरी पेशकश, जो मैंने अपने किसी अतिप्रिय के लिए लिखी है, सभी पढ़ने वालों को पसंद आएगी। अच्छी लगे न लगे ख़राब नही लगेगी।


तेरे ख्वाबों मे खो जाने को दिल चाहता है,

तेरी दिल्लगी मे दिल लगाने को दिल चाहता है.

दिल चाहता है दम भर तुम्हे देखता रहूँ,

तेरे साथ हर पल मे एक ज़िंदगी जी लेने को दिल चाहता है.

तेरी हर साँस को महसूस करने को दिल चाहता है,

तेरे बदन की खुशबू मे महक जाने को दिल चाहता है.

दिल चाहता है तेरी सांसो मे कहीं खो जाऊं,

तेरे हर साँस को अपना बना लेने को दिल चाहता है.

तेरी झील सी इन आँखों मे घर बनाने को दिल चाहता है,

तेरे दिल के किसी कोने मे बस जाने को दिल चाहता है.

दिल चाहता है हर पल तेरे साथ रहूँ,

तेरी बाँहों मे छोटा सा एक आशियाँ बनाने को दिल चाहता है.

नैनों मे तेरे काजल बन कर रह जाने को दिल चाहता है,

बिंदियाँ बनकर तेरे माथे को चूमने को दिल चाहता है.

दिल चाहता है कानों की बाली बनकर तेरे गालों को चुमूं,

आइना बनकर हर वक्त तेरे दीदार करने को दिल चाहता है.

दिल सहम जाता है तुझसे जुदा होने के बस ख्याल से

टूट जाता है दिल तुझसे अलग होने के हर सवाल से

दिल चाहता है तेरी ज़िंदगी का एक हिस्सा बन जाऊँ,

तेरे साथ पूरी ज़िंदगी गुजार देने को दिल चाहता है.

अंशुमान आशु

4 comments:

Anonymous said...

क्या आशु ये ग्रीटिंग कार्ड वाली कविता कहाँ से लाये हो?

Alok said...

क्या आशु ये ग्रीटिंग कार्ड वाली कविता कहाँ से लाये हो?

Anonymous said...

priya aashuji,
maine aapki kavita padhi. padh ke main romanchit ho gayi. aisa laga jaise mai kahi kho gayi hu. sach me aapki kavita mere dil ko chu gayi.
aapki prashanshika.

Alok said...

ऊपर वाला कमेंट मेरा नही है!