Friday, June 11, 2010

एंडरसन के लिए इतना हंगामा क्यूँ, क्या किया था उसने?

कुछ दिनों से भोपाल गैस काण्ड, इसपर हुआ कोर्ट का फैसला एवं एंडरसन बहुत ज्यादा चर्चे में है। हो भी क्यूँ नहीं, आखिर हमारी न्यायपालिका ने एक अद्भुत फैसला जो सुनाया है इस मामले में। 15,000 मौत और लाखों की संख्या में पीड़ित, और फैसला आता है 2 साल की कैद का और 5 मिनट के बाद ही सजा पाए लोग रिहा कर दिए जाते हैं जमानत पर। ये अद्भुत नहीं तो और क्या है। फैसला आया और बड़ी गरमा-गर्मी हुई इस फैसले पर। हर किसी ने माना कि फैसला नाकाफी है मगर किसी के हाथ में करने के लिए कुछ भी नहीं। सिवाय निंदा करने के कोई भी, सरकारी या गैर-सरकारी, कुछ भी नहीं कर सका। कई बार की तरह इस बार भी न्यायपालिका पर कई सवाल उठाये गए। कुछ जरूरी कदम उठाने की बात हर कोई कर रहा है। हम भी उम्मीद में टिके हैं कि कभी कुछ होगा। उम्मीद के अलावा हमारे पास और कुछ नहीं। चलिए कोई बात नहीं। हम इंतज़ार करेंगे कि कुछ कदम उठाये जाएँ।
न्यायपालिका पर बहस अभी ख़त्म भी नहीं हुई थी तब तक एंडरसन मामला तूल पकड़ गया। एंडरसन यूनियन कार्बाइड का CEO था जब ये घटना घटित हुई थी। कई बातें सामने आ रही हैं। एंडरसन का गिरफ्तार होना, गिरफ्तार होने के बाद सरकारी मेहमान के रूप में देश से भाग जाना और फिर अमरीका का उसके प्रत्यर्पण के लिए इनकार कर देना, इन सब के बारे में कई बातें उठ रही हैं। तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार एवं मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह पर फिर से सवाल उठ रहे हैं। नाम राजीव गाँधी का भी आ रहा है जो उस वक़्त प्रधानमंत्री हुआ करते थे। मुद्दा-विहीन विपक्ष को एक मुद्दा मिल गया सरकार पर आरोप लगाने का। संसद का मानसून सत्र कुछ दिनों में शुरू होगा और ऐन मौके पर हमारे नेताओं को एक मौका मिल गया जनता के पैसे को बर्बाद करने का। पूरी तय्यारी हो चुकी है संसद के काम को ठप करने के लिए।
इतना शोर, इतनी बहस और ये सब किसके लिए? उस एंडरसन के लिए जो इस त्रासदी के एक दिन बाद ही उस जगह पर गया था जहां तब भी जहरीली गैस अपना अस्तित्व बनाये हुई थी। '84 में मैं पैदा नहीं हुआ था। जितना भी इसके बारे में जनता हूँ वो सब सिर्फ सुना या पढ़ा है। सभी माध्यम से एक बात ही पता चलती है कि जो भी हुआ वह एक त्रासदी थी भोपाल के लोगों के लिए। एक हादसा था जिसका दोष किसी एक पर डाल देना शायद सही नहीं था। न कोई मानवीय भूल थी, न ही किसी की सोची समझी साजिश थी ऐसा करने की। एक दुर्घटना थी जो उस रात काल के रूप में भोपाल के लोगों के ऊपर घटित हो गयी। गुजरात का भूकंप हो, उडीसा का चक्रवात हो या फिर सुनामी का कहर, प्रकृति के खेले इन खेलों की तरह भोपाल काण्ड पर भी तो किसी का जोर नहीं था। एंडरसन को इन सब का जिम्मेदार आखिर क्यूँ बनाया जाए?
क्या किया था एंडरसन ने। भारत को एक बड़ा बाज़ार समझ कर यूनियन कार्बाइड ने अपनी फैक्ट्री भोपाल में स्थापित की। एक व्यवसायी होने के नाते पहला उद्देश्य एंडरसन का यहाँ से पैसे बनाना था। पैसे बनाने के लिए उसने कोई गलत रास्ता तो नहीं अख्तियार किया था। वो फैक्ट्री हमारे देश में स्थापित कानून के हिसाब से कहीं से भी गड़बड़ नहीं थी। सुरक्षा के जितने मापक हमारे देश के कानून के द्वारा अपेक्षित हैं उन सबों को इस फैक्ट्री ने पूरा किया होगा तभी इसके संचालन की अनुमति सरकार ने दी होगी। अगर बिना अपेक्षाओं को पूरा किये हुए इसका संचालन हुआ था तो गलती कहाँ से एंडरसन की होती है, ऐसी स्थिति में दोषी सरकार को बनाना चाहिए। खैर क्या हुआ, क्या नहीं हुआ इस बात की जानकारी मुझे नहीं मगर इतना जरूर जानता हूँ कि ऐसी घटना के लिए कोई भी जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता।
एंडरसन की गलती क्या अमरीका के द्वारा हिरोशिमा और नागासाकी पर परमाणु बम गिराए जाने से ज्यादा बड़ी है? शोध से ये साबित हो चुका है कि Methyl Isocyanide का जीवन पर कोई दूरगामी प्रभाव नहीं होता है। जितना दुष्प्रभाव होना था वो उस एक रात में ही हो गया मगर जो अमरीका ने हिरोशिमा और नागासाकी के लोगों के साथ किया है उसका कोई लेखा-जोखा हमारे पास न है, न होने की कोई संभावना है। लाखों की संख्या में एक ही क्षण में मौत, उससे भी ज्यादा लोगों पर रेडिएशन का तात्कालिक और दीर्घकालिक प्रभाव क्या भोपाल के लोगों पर हुई त्रासदी से छोटा है। आज भी जापान में बच्चे विकलांग पैदा हो रहे हैं, लोगों में कैंसर की संभावना आज भी ज्यादा बनी हुई है। इन सब के बावजूद आज अमरीका दुनिया पर अपना वर्चस्व बनाये हुए है।
हमारे यहाँ शोर मचा हुआ है कि एंडरसन के प्रत्यर्पण के लिए जरूरी कदम नहीं उठाये गए। अगर उठाये जाते तो क्या अमरीका एंडरसन को इतनी आसानी से हमारे पास आ जाने देता। हम उस अमरीका से ऐसा कैसे उम्मीद कर सकते हैं जिसने लाखों लोगो को मौत की नींद सुला कर और कई करोड़ को आजीवन कष्ट देकर खुशियाँ मनाई थी। एंडरसन को हम किस बात की सजा देंगे। उसने हमारे यहाँ आकर अपने लिए पैसा बनाया और हमारे लोगों को नौकरी देकर दो जून की रोटी दी, इसलिए, या फिर इसलिए कि वो हादसे के अगले दिन ही जहरीली गैस के बादल से ढके भोपाल आता है स्थिति का जायजा लेने।
गलती की तह पर गए बिना ही हम कितना भी शोर मचा लें कुछ नहीं होने वाला। एक हादसा जिस पर किसी का जोर नहीं था उसके लिए हमें किसी को सजा नहीं देनी चाहिए, बस सीख लेना चाहिए ताकि आगे ऐसा कुछ न हो।

15 comments:

आचार्य उदय said...

आईये पढें ... अमृत वाणी।

honesty project democracy said...

हर व्यक्ति अपनी बुद्धि और अनुभव के आधार पर हर घटना और परिस्थितियों की व्याख्या करता है और आपने उस आधार पर सही व्याख्या किया है | लेकिन सच यह है की हमारी छोटी-छोटी गलतियाँ और लापरवाही ही किसी बरे हादसे का कारण होती है और यह कोई प्राकृतिक हादसा नहीं था यह सुरक्षा और रखरखाव की गंभीर लापरवाही का नतीजा था जिसके लिए एंडरसन पूरी तरह जिम्मेवार हैं ,यह बात आप तब ज्यादा अच्छी तरह समझ जायेंगे जब आप किसी बड़े प्लांट में एक जिम्मेवार अधिकारी के पद पर ईमानदारी से कुछ वर्ष काम कर लेंगे |

Aashu said...

@honesty project democracy: मैं आपकी बात मानता हूँ कि छोटी छोटी गलतियाँ ही बड़े हादसे का कारण बनती हैं। मगर आप मुझे ये बताएं कि इतनी बड़ी फैक्ट्री में सुरक्षा अधिकारी की हैसियत CEO के सामने कितनी बड़ी होती है। ज़रा व्यावहारिकता से सोचें कि क्या एक CEO के लिए ये संभव है कि फैक्ट्री का हरेक कोने के बारे में उसे पूरी जानकारी रहे। अगर नहीं है तो हम कैसे उसे सजा दे सकते हैं। वो अपराधी नहीं हो सकता, वो सिर्फ नैतिकता के आधार पर जिम्मेवार ठहराया जा सकता है!

Jandunia said...

सुंदर पोस्ट

honesty project democracy said...

आशु जी ईमानदारी से देखा जाये तो ये जितने IAS और IPS हैं इनके कार्य का समय चोबिसों घंटे है क्योकि इनका काम मानसिक है ना की शारीरिक उसी तरह एक इमानदार CEO का काम होता है कंपनी के हर पहलुओं पे मानसिक चिंतन कर उसमे सुधार कर लापरवाहियों को दूर करना ,अब अगर कोई इस मद में चूर होकर अपने जिम्मेवारियों की जगह ऐय्यासी और सिर्फ तिकरम से पैसा बनाने में लगा रहे तो उसको क्या कह सकते हैं और आज ऐसा ही हो रहा है हर जगह हमारे देश में क्योकि सबको पता है की जिम्मेवारी तय करने और सजा देने की साडी व्यवस्था सड़ चुकी है ?

eklavya said...

@honesty proj democracy
whatever ashu is correct. even i dont see any fault from anderson side. since we cant do anything for these people so its just like frog crocking nothing more then that.
IAS nd IPS do a lot of physical as well as mental job for country and nobody can doubt on there ability.

माधव( Madhav) said...

i agreed with You

Aashu said...

@ honesty project democracy: आपने कहा कि हमारे देश में जिम्मेवारी तय करने और सजा देने की सारी व्यवस्था सड़ चुकी है? मेरा तर्क भी सिर्फ इतना ही है। एंडरसन को पकड़ कर भले हम फंसी की सजा दे दें, मगर इससे जो मुसीबत की जड़ है उसका कोई निदान तो नहीं होगा। मैं सिर्फ इतना ही कहना चाह रहा हूँ कि हमारे शोर और हमारे हंगामों की दिशा इन मूलभूत संरचनाओं के बेहतरी की तरफ होनी चाहिए न कि सिर्फ एंडरसन को पकड़ कर सजा दे देने और उसके बाद इस कामयाबी का स्वांग रचने की तरफ।

Himanshu Kumar said...

We Indians have learned the blame game to the utmost,thanks to our politicians. Any bomb blast and we start crying Pakistan without prior confirmation, this has become a part of our culture and that is what sir Mr .honesty project democracy is also doing.

Amar Pratap Singh said...

Anderson ne kuch kiy hi kahan isi ka to gam hai aur rahi baat Anderson ko faansi dene k Fayde ki to vah yah hogi ki Dubara India mein koi Anderson paida nahi hoga.

Amar Pratap Singh said...

Anderson ne kuch kiya hi kahan isi ka to gam hai aur rahi baat Anderson ko faansi dene k Fayde ki to vah yah hogi ki Dubara India mein koi Anderson paida hone k chances 90% kam ho jayenge.

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपके लेख से सहमत

dhiru singh { धीरेन्द्र वीर सिंह } said...

आपके लेख से सहमत

Unknown said...

आशु भाई, आपने बहुत बढ़िया विश्लेषण किया है…

एक शंका का निवारण करें - रिश्वत देने वाला और रिश्वत लेने वाला दोनों समान रूप से दोषी हैं या नहीं?

यदि कोई गैरकानूनी काम करने अथवा सुरक्षा मानकों के पालन में ढील देने हेतु कोई उद्योगपति देश के IAS और नेताओं को "खरीदता" है तो दोनों का दोष बराबरी का है या नहीं? क्या उद्योगपति को इसलिये छूट दी जानी चाहिये कि वह तो "धंधा" कर रहा है और "रोजी-रोटी" दे रहा है? चाहे जैसे भी करे…

इस तर्क के अनुसार तो मुकेश अम्बानी भी एक "सन्त"नुमा व्यक्तित्व ही है, क्योंकि वह भी लाखों लोगों को रोटी दे रहा है। कैसे दे रहा है, क्या कर रहा है, कितने कानूनों का जानबूझकर और कितने कानूनों का सरकारी मशीनरी को खरीदकर उल्लंघन कर रहा है, इससे हमें कोई लेना-देना नहीं होना चाहिये?

जब फ़ौज हारती है तो ठीकरा सैनिक के नहीं, बल्कि जनरल के माथे फ़ोड़ा जाता है, गैस काण्ड में गलती चाहे सुरक्षाकर्मी की हो, एण्डरसन दोषी है, इसी प्रकार उसे भगाने में चाहे किसी भी IAS या विदेश सेवा अधिकारी का हाथ हो, दोषी तो अर्जुनसिंह और राजीव गाँधी ही माने जायेंगे….

Shri Ram Ayyangar said...

After 26 years people are digging grave to find a scapegoat!