Wednesday, October 06, 2010

उस पुराने वाले 'तुम' को कहीं न कहीं खोज कर अपना वही 'हम' ज़रूर बनाऊंगा

कई बार ज़िन्दगी में कुछ ऐसे दुखों का सामना करना पड़ता है कि फिर ज़िन्दगी पर से विश्वास उठने लगता है. किसी बहुत अपने को खोने के बाद ये डर हमेशा सताता रहता है कि कहीं बाकी सब भी छोड़ कर न चले जाये. ऐसे में दोस्तों के साथ की जरुरत होती है और मन बार बार इस बात की तसल्ली लेना चाहता है कि वो साथ हैं या नहीं. ऐसी ही कुछ स्थिति एक अभिन्न मित्र के ज़िन्दगी में कुछ साल पहले घटी. उसने अपने पिताजी को खोया और आज भी हम दोस्तों से इस बात की तसल्ली लेता रहता है कि हम उसके साथ हैं या नहीं. उसी को समर्पित मेरी ये कविता!


दोस्त,
वो बचपन के दिन याद हैं?
मेरे लिए एक नया स्कूल, एक नयी जगह,
कोने में चुपचाप बैठे रहने की मेरी एक ही वजह.
मेरा कोई दोस्त न था वहाँ.
पुराने दोस्तों को पीछे छोड़ आया था,
नए बनाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया था.
जब चाहा था किसी का साथ
तब तुमने ही बढाया था अपना हाथ.

हाँ, दोस्त,
मुझे वो सबकुछ याद है.
वो क्लासरूम की मस्ती,
लंच पीरियड की वो मटरगस्ती,
स्कूल फी जमा करने के बहाने क्लास बंक करना,
स्पोर्टस पीरियड लगवाने के लिए टीचर से जंग करना,
कैंटीन के समोसे की लाइन में मुझे धकेल देना,
और क्लास में पनिशमेंट के लिए मेरी जगह खुद चले जाना.
तुम्ही तो रहते थे हर पल साथ.

हाँ दोस्त, 
मुझे सब कुछ है याद.
मगर आज फिर भी तुम पूछते हो, मैं दूंगा न तुम्हारा साथ?
सच्चे दोस्त कभी बदलते नहीं,
जो बदलते हैं वो सच्चे होते नहीं.
मैं जानता हूँ दोस्त तुमने क्या खोया है,
इतनी कच्ची उम्र में ही कितना रोया है.
पिता को खोने के दर्द को मैं ले तो नहीं सकता हूँ
पर उस दर्द को बांटने का जतन तो कर सकता हूँ.
जानता हूँ, उस वक़्त तुम्हारे आंसू पोछने न आ सका
मालूम है मुझे, तुम्हारी दोस्ती का क़र्ज़ न चुका सका.

पर दोस्त,
ज़रा सोचो,
हमने भी तो खोया है किसी अपने दिल के करीब को.
वो 'तुम' जो उस दर्द के मिलने के पहले हुआ करते थे
आज उस दर्द के साए में कहीं खो गए हो,
वो 'तुम' जो कभी मेरे 'हम' का हिस्सा थे
आज कहीं दूर हो गए हो.
पर याद रखना, दोस्त,
अपनी दोस्ती का क़र्ज़ ज़रूर चुकाऊंगा
उस पुराने वाले 'तुम' को कहीं न कहीं खोज कर
अपना वही 'हम' ज़रूर बनाऊंगा.


5 comments:

Shah Nawaz said...

वाह बेहतरीन!

संजय भास्‍कर said...

एहसास की यह अभिव्यक्ति बहुत खूब

संजय भास्‍कर said...

आपका ब्लॉग पसंद आया....इस उम्मीद में की आगे भी ऐसे ही रचनाये पड़ने को मिलेंगी......आपको फॉलो कर रहा हूँ |

कभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

Unknown said...

dil se likha hai! bahaut achi lagi ye kavita:)

Aashu said...

@neha: main sab kuchh dil se hi karta hoon!