Thursday, September 03, 2015

इंसानियत, दम तोड़ चुका।


वो पड़ा था,
औंधे मुंह,
लहरों के बीच,
रेत पर,
मासूम सा, निर्दोष।
सांसें बंद थीं,
नब्ज़ रुकी हुई।
जाना पहचाना सा लग रहा था,
इंसानियत सा,
दम तोड़ चुका।

1 comment:

Vishwam Prakash said...

Kafi Samvedansheel Chitra hai.Pichle hafton me isne arbon logon k man ko jhakjhora hai....Humari ye samvedansheelta bhi kuch ummed to bandhti hai