एक हफ्ता हो गया ब्लॉग पर कुछ हलचल हुए. इधर कुछ व्यक्तिगत पोस्ट पर जिस तरह की प्रतिक्रिया आप सब से मिली उस से खुशी भी हुई और थोड़ा आश्चर्य भी हुआ. हमारी 'उनकी' बात सच साबित हो गयी. उनके बारे में लिखा और टिप्पणियों का तांता लग गया. स्कूल जीवन के एक रोचक हिस्से को पोस्ट में उतारा तो वो भी हिट हो गया. उसके पहले कई तरह के पोस्ट मैंने अपने ब्लॉग पर लिखे, कुछ सिनेमा से सम्बंधित, कुछ राजनीति से तो कुछ क्रिकेट से. किसी भी पोस्ट पर इस तरह का रेस्पोंस नहीं मिला जैसा की अंतिम दो पोस्ट पर मिला. शायद लोगों को दूसरों की जिंदगी के बारे में जानने में सच में ज्यादा मन लगने लगा है. अब समझ में आने लगा है कि कैसे टीवी धारावाहिक इतने प्रचलित हो गए हैं. हिंदी न्यूज चैनलों पर समाचार छोड़ कर सारी अनाप शनाप बातें होती है, इसके पीछे भी शायद हम लोगो की यही बदली हुई मानसिकता है जिसमे हम यथार्थ को छोड़कर किसी के फटे में टाँग घुसाने की कोशिश हमेशा करते रहते हैं. क्या जरूरत है Tiger Woods के दर्जनों सेक्स संबंधों को इतनी तवज्जो देने की. उसने बलात्कार तो नहीं किया, आपसी सहमति से सम्बन्ध बनाए फिर भी पूरी दुनिया को जानने की पड़ी है कि और कितनी लड़कियों के साथ उसके सम्बन्ध रहे हैं. Brad Pitt और Angelina Jolie अलग हो रहे हैं, इसपर भी ब्रेकिंग न्यूज बन गया. सोचिये अगर आपके घर में (भगवान न करे) ऐसा कभी कुछ होता है और आपके पड़ोसी इसकी चर्चा करते रहते हैं तो आप पर क्या बीतेगी. इस सवाल के रूप में ही अपनी बात रखना चाह रहा हूँ. क्या सच में आज हम ऐसे हो गए हैं जहाँ हमें दूसरों की व्यक्तिगत जिंदगी में क्या हो रहा है ये जानने में सुकून मिलता है??
बहरहाल, इधर के दो पोस्ट पर प्रतिक्रियाओं के साथ अपनी कहानी को आगे लिखने की मांग भी आई हैं. ब्लॉग लिखता हूँ कि लोग पढ़े और इसे पसंद करें. भाई TRP का ज़माना है. इसके लिए कुछ भी करने को तैयार हैं हम. आगे जरूर अपनी प्रेम कहानी के बारे में लिखूंगा मगर इस बार कुछ राजनीतिक लिखने कि इजाज़त दी जाये.
कुछ महीने पहले महाराष्ट्र में चुनाव हुए. कांग्रेस की सरकार एक बार फिर चुन ली गयी. शिव सेना की रही सही साख भी खत्म हो रही थी. बाला साहब के मराठी माणूस के फार्मूले को राज ठाकरे उनसे अलग होकर अपने फायदे के लिए भुना रहे थे. कही न कही बाला साहब अपना मन मसोस कर ही रह जाते होंगे. उनके अंदर का शेर अब बुढा हो गया था और मेमने में उनके जैसा करिश्मा नजर नहीं आ रहा था. जरूरत थी एक बार फिर अपने उसी रूप को जगाने की जो 90 के दशक में हमने बखूबी देखा था. जरूरत थी एक मुद्दे की जिससे वो फिर एक बार अपनी घटिया राजनीति खेल सकें, वो हिंसक भडकाऊ खेल जिसके वो माहिर खिलाडी थे.
इधर शाहरुख खान की फिल्म रिलीज होने वाली थी. विवादों को फिल्म के लिए सबसे बड़ी पब्लिसिटी समझने वाले इस बॉलीवुड में हर बड़ी फिल्म के पहले कोई न कोई विवाद जरूर खड़ा होता है. ये एक संयोग है या फिर सोची समझी साजिश, कह पाना बड़ा मुश्किल होता है. कोई भी फिल्मकार या अभिनेता इस से अछूता नहीं है. आमिर खान का बड़ा फैन हूँ मैं, मगर उससे भी खफा रहता हूँ इस बात के लिए. उनके साथ भी विवाद जुड़े ही रहते हैं. मेधा पाटकर के साथ वो आज आंदोलन में बैठने की कोशिश नहीं करेंगे लेकिन यदि अगले हफ्ते कोई फिल्म रिलीज होने वाली हो तो जरूर जायेंगे. 3 Idiots के साथ भी बिना मतलब का एक विवाद जुड़ गया. शाहरुख खान भी इससे अछूते नहीं हैं. मुझे आज तक समझ नहीं आया की बिल्लू बारबर फिल्म में नाइयों के प्रति ऐसी कौन सी दुर्भावना दिखाई गयी कि इस फिल्म के नाम से बारबर हटाना पर गया. नाइयों को सच में कोई आपत्ति थी या फिर शाहरुख खान ने खुद ही ये विवाद उठाया था नहीं कह सकता, मगर इतना तो जरूर है कि किसी भी बड़ी रिलीज के पहले कोई न कोई विवाद होना जरूरी ही हो चला है.
My Name Is Khan रिलीज होने वाली है. शाहरुख को जरूरत थी इसकी मुफ्त पब्लिसिटी की. विवाद से बढ़िया उपाय और कौन हो सकता था. भगवान ने भी उनकी सुन ली. पाकिस्तानी खिलाडियों पर उनका बयान मामूली सा था. इस बयान के बारे में उन्होंने भी नहीं सोचा होगा कि इससे उनका इतना फायदा हो जायेगा. मन ही मन में बाल ठाकरे ने भी शाहरुख को शुक्रिया कहा होगा इस बयान के लिए. इसी बयान ने शिव सेना की डूबती नैया को सहारा दे दिया. बहुप्रतीक्षित मुद्दा उन्हें भी मिल गया. अपनी भडकाऊ राजनीति के लिए इस से अच्छा मुद्दा और कहाँ मिलता.
शिव सेना ने विरोध शुरू कर दिया और शाहरुख भी अड़े रह गए. उन्हें भी फायदा हो गया. मुफ्त की पब्लिसिटी मिल गयी बाजार में. अगर किसी की आँखों से फिल्म का पोस्टर छूट भी जाता तो भी शिव सैनिको ने उसे कैमरे के सामने जलाकर ऐसा होने से रोक लिया. शाहरुख की फिल्म थी, चलती बिना विवादों के भी. मगर फिर भी लोग आदत से मजबूर हैं. विवाद नहीं तो फिल्म हिट कैसे हो. शाहरुख ने कहा माफ़ी नहीं मांगेंगे. खुद कभी जो तेल नहीं लगाया हो वैसे तेल का प्रचार करने वाला शाहरुख आज अपने स्वाभिमान की बात करने लगा. सच क्यों नहीं कह देते शाहरुख की माफ़ी नहीं मांगने से तुम्हारा फायदा ही फायदा था.
बालासाहब भी भिड़े रह गए. उन्हें भी फायदा मिल रहा था. शिव सेना के जिस रूप का हम सिर्फ सालाना valentine's day पर ही दर्शन कर पाते थे वो हमें इस बार पहले ही मिल गया. उनकी तो चांदी ही चांदी है. मुद्दे मिल नहीं रहे थे और आज मुद्दों की बाढ़ आ गयी है. किसे पकड़े किसे छोड़े समझ नहीं आ रहा है. शाहरुख का बयान हो या फिर ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ियों को IPL में नहीं खेलने देने का मुद्दा. और तो और एक हफ्ते में ही Valentine's Day भी आ रहा है. सोनिया गाँधी का विदेशी मूल तो है ही इन सब के साथ. औलाये बौलाए ठाकरे को समझ में नहीं आ रहा क्या करें. शाहरुख के बयान से जितना फायदा निकालना था निकाल लिया. अब कहते हैं की फिल्म का विरोध नहीं करेंगे. आखिर कहे क्यों नहीं. फिल्म का विरोध करेंगे तो 14 फ़रवरी को दुकानों और क्लबों में तोड़फोड़ कौन करेगा. गिने चुने कार्यकर्ताओं से ही तो उन्हें हर जगह काम चलाना है. हड्डी टूट गयी तो फिर दुसरे मुद्दे पर पोस्टर और पुतले जलाने के लिए आदमी कहा से लायेंगे. जो कुछ आदमी बचे हैं उनके पास वो भी छोड़ कर चल देते अगर कुछ दिन की और बेरोजगारी झेलनी पड़ती. जाने अनजाने में शाहरुख ने शिव सैनिको को रोजगार दे डाला और बदले में शिव सैनिकों ने उन्हें फिल्म का प्रचार. मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा अगर शाहरुख और बाल ठाकरे दोनों एक दुसरे का धन्यवाद ज्ञापन करते हुए पाए गए! आखिर दोनों ने एक अजीबोगरीब दोस्ती ही तो निभाई है!
2 comments:
बहुत रोचक पोस्ट है।
धन्यवाद मनोज जी!
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