लिखना बहुत कुछ चाहता हूँ। लिखने को बातें भी ढेर सारी हैं मन में। मगर, कुछ हो गया है। किसी अपने से जब दिल दुःख जाये तो क्या हो? या उससे भी ज्यादा जब किसी अपने का दिल खुद दुखा दो तब क्या हो? आत्म-ग्लानि की एक रात यूँही करवटें बदलते बदलते कट गयी। मन में बहत कुछ है मगर इतना कुछ है कि उनमे से निकलकर बाहर आने के लिए शब्दों के लिए जगह नहीं बच रहे हैं। शब्द बन जरूर रहे हैं मगर उनसे अभिव्यक्ति हो जाए अपनी मनःस्थिति की ये संयोग नहीं बैठ पा रहा। सच में शब्दों के जरिये अपनी बात रख देना आज कितना मुश्किल लग रहा है। लग रहा है कि ये सिर्फ एक संयोग होता है कि आप सही सही अपनी बातों को अपने शब्दों के माध्यम से प्रस्तुत कर दें। आज जरूर वो संयोग बैठ नहीं पा रहा। कहीं न कहीं कोई ताकत तो जरूर है जो हमें इन शब्द-जाल से खेलने की प्रेरणा एवं शक्ति देती रहती है। आज वो ताकत कहीं ख़त्म हो गयी लग रही है।
कितनी आसानी से एक छोटी सी बात पर किसी से खफा हुआ जा सकता है और कितना मुश्किल हो जाता है तब एक -एक लम्हा, कितना भारी हो जाता है बिताना एक-एक पल। क्यूँ लगने लगता है कि कुछ भी नहीं रहा। दिमाग का कौन सा वो तार टूट जाता है कि हम रह जाते हैं बस मूक बनकर। कल रात से ही ये पोस्ट लिखने के लिए ये पेज खोल रखा है। न जाने कितनी बार कितने शब्द लिखकर वापस मिटा दिए हैं। हर बार एक कोरा कागज़ ही बचा, और हर बार लगा कि यही तो है जो मैं लिखना चाह रहा हूँ। जी हाँ आज के पोस्ट पर सिर्फ एक कोरा कागज़!!!
"जो लिखा था आंसुओं के संग बह गया!!!"
8 comments:
nice
कोरा कागज़ ही बहुत कुछ कह गया
दर्द की तस्वीर जो उभर रही हैं वो दिख रही हैं कोरे कागज़ पर
काफी melodramatic पोस्ट है. (पता नहीं मेलोड्रामा को हिंदी में क्या कहते हैं!)
@Alok: कभी-कभी सार्थकता से हटकर नाटकीयता का सहारा लेना भी उचित ही है और कई बार तो सार्थकता की तलाश करते करते भी नाटकीयता ही हाथ लगती है। शायद ये पोस्ट भी ऐसा ही कोई क्षण था! :)
वैसे गंभीरता से कहें तो कुछ बातें ऐसी होती हैं, जो ब्लॉग पर या फेसबुक आदि के स्टेटस पर नहीं डाली जा सकती हैं. और डालनी भी नहीं चाहिए! अपनी किसी निजी डायरी में लिखने का प्रयास करो. अकेले में उसके बारे में सोचो फिर शायद उसमे से कुछ बौद्धिक या दार्शनिक निष्कर्ष निकले. तब जाकर शायद कोई अर्थपूर्ण और non-melodramatic ब्लॉग लिख सको
"और कई बार तो सार्थकता की तलाश करते करते भी नाटकीयता ही हाथ लगती है" -- जी हाँ बिलकुल :) पता नहीं irony को हिंदी में क्या कहते हैं!
irony == विडंबना
@ALok: आपकी बात से बिल्कुल सहमत हूँ कि हर बात ब्लॉग पर लिखने लायक नहीं होती। खैर, इरोंय को हिंदी में शायद विडंबना कहते हैं। :)
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