Friday, February 26, 2010

ब्लॉग्गिंग आखिर क्यों?

2008 मार्च से ब्लॉग लिख रहा हूँ। उसके पहले ब्लॉग के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। बड़े भाई साहब ने ब्लॉग के बारे में बताया था और उन्होंने ही मेरा ब्लॉग बनाया भी था। उनके अनुसार, कुछ भी देखकर या पढकर जो कुछ भी महसूस होता है, उसे शब्दों का रूप दे देना ब्लॉग कहलाता है। खुद अंग्रेजी किताबों और फिल्मों के बहुत बड़े शौक़ीन हैं और हज़ारों की संख्या में किताबे पढ़ चुके हैं और फ़िल्में देख चुके हैं। उन्ही किताबों और फिल्मों के बारे में वो ब्लॉग लिखा करते हैं। अंग्रेजी ब्लॉग जगत में एक अलग पहचान है उनकी। उनके द्वारा दिखाए गए रास्ते को ही पकड़ कर मैंने भी ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया। शुरुआत अंग्रेजी में लिखे पोस्ट से ही हुई। ज्यादातर मैं भी ब्लॉग फिल्मों के बारे में ही लिखा करता था। अंग्रेजी में लिखना कोई मजबूरी नहीं थी बस हिंदी में टाइप करना बड़ा ही कष्टदायक काम लगता था इसलिए अंग्रेजी को ही अपना माध्यम चुन लिया। ऊपर से बचपन से अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़े होने के कारण कभी अंग्रेजी को पराया नहीं पाया। हिंदी तो अपनी थी ही, हमने अंग्रेजी को भी गोद ले रखा था।
शुरुआत में वैसी फिल्मों के बारे में ही लिखता था जिन्हें देखकर सच में अच्छा लगा हो। मगर कुछ पोस्ट के बाद लगा कि अच्छी फिल्मों के बारे में लिखने के साथ-साथ उन फिल्मों की आलोचना करना भी जरूरी है जो उतनी अच्छी नहीं लग पायीं। जब ऐसी फिल्मों के बारे में लिखने लगा तो पाया कि ज्यादातर पोस्ट नकारात्मक आलोचना वाले ही होने लगे। अंदर से एक ग्लानि महसूस होने लगी। किसी की कृति को यूँ बैठे बैठे चंद शब्दों के जरिये नकार देना अच्छा नहीं लगा। लिखते समय बड़ा गर्व महसूस होता था कि आज तो अमुक फिल्म का बस ले लिए। लेकिन बाद में सोचता था कि किसने मुझे हक दिया किसी की मेहनत को इस तरह भला बुरा कहने का। कोई अपना दिल लगा कर किसी चीज की रचना करता है और उस रचना को हम यूँही भला बुरा कह दे, यह तो उस भगवान का अपमान है जिसने रचनात्मक कार्यों को इस धरती का सबसे बड़ा पुण्य बताया है।
धीरे-धीरे कुछ लिखने की ओर से मन उचटने लगा और ज्यादा समय ब्लॉग लिखने के बजाय ब्लॉग पढ़ने की ओर जाने लगा। एक तरह से अच्छा ही था, कम से कम कई तरह के विचारों की जानकारी तो मिलने लगी थी। ब्लॉग पढ़ने के इसी क्रम में कई सारे हिंदी ब्लॉग पढ़ने का मौका मिला। अपनी राष्ट्रभाषा हिंदी के प्रति प्रेम थोडा और बढ़ गया। अब हिंदी टाइप करने में होने वाली परेशानी हिंदी के प्रति सम्मान के सामने छोटी लगने लगी और हिंदी में ब्लॉग लिखना शुरू कर दिया।
इधर कई सारे हिंदी ब्लॉग पढ़े। मालूम चला कि हिंदी ब्लॉग भी एक अथाह समंदर है जिसमे गोते पर गोते लगाये जा सकते हैं। एक-आध कोने में मैंने भी गोते लगाये। अब इसे सिर्फ अपनी किस्मत ही मान लेता हूँ कि इस समंदर के जिस तट पर मैंने गोते लगाए वहाँ ज्यादातर ब्लॉग मुझे राजनीतिक ही मिले। ज्यादातर ब्लॉग में मन का गुबार फूटता हुआ ही नजर आता था। कही किसी की भड़ास निकलती हुई मिलती थी कहीं कोई ज्वालामुखी फूटता था। हर तरफ अपने समाज और इसकी व्यवस्था के प्रति एक अजीब सी नकारात्मकता नजर आती थी। हर जगह कोई न कोई किसी न किसी की आलोचना ही करता मिलता था। हिंदी भाषा की तकनीकि जानकारी की थोड़ी कमी है इसलिए आपसे ही एक सवाल पूछना चाहता हूँ। क्या नकारात्मक टिप्पणियां ही आलोचना कहलाती हैं? क्या आलोचनाएं सकारात्मक नहीं हो सकतीं?
मानता हूँ अपने समाज में एक अजीब गंद फैली हुई है मगर क्या सिर्फ गंद ही है? खोजना चाहेंगे तो आज भी इस समाज में बडाई करने लायक बातें होती हैं, मगर क्यूँ लोग हमेशा उन बुराइयों को ही अपना निशाना बनाते हैं। बुराइयों को सब की नजरों में लाकर जरूर हम अच्छा काम करते हैं मगर क्या हमें उन बड़ाईयों को भी ऊपर लाकर प्रोत्साहन नहीं देना चाहिए? समाज एक आदमी नहीं बदल सकता मगर शुरुआत एक आदमी ही करता है। उसे अगर उसका उचित प्रोत्साहन हम नहीं देंगे तो कौन देगा? और अगर कोई नहीं देगा तो उसका अन्तःमन भी एक दिन जवाब दे जायेगा। उम्मीद की एक किरण जो उसके रूप में उगी थी वो भी कहीं खो जायेगी। इस धरातल से रसातल की और जा रहे समाज को देखकर जरूर हमारे मन में नकारात्मक भावनाएं भर आती हैं मगर इससे काम तो नहीं चलने वाला। काम तो होगा सकारात्मकता से ही। कम से कम अपनी सोच में तो सकारात्मकता लानी ही होगी।
इतना सब कुछ तो मैंने कह दिया है मगर ये जरूर कहूँगा कि इन सब से मैं भी अछूता नहीं रहा हूँ। कहीं न कहीं ऐसा जरूर लगता है कि ब्लॉग्गिंग ने समाज की नकारात्मकता को बढ़ावा दिया है। खैर, हिंदी ब्लॉग के समंदर के एक छोटे से तट पर डुबकी लगा कर इतनी सारी बातें कह देना तो वैसा ही है मानो जैसे एक खट्टे आम को खाकर कह देना कि पूरा का पूरा पेड़ ही खट्टा है। कुछेक ब्लॉग पढकर इस तरह से पूरे समाज के बारे में ऐसी धारणा बना लेना कहीं से सही नहीं है। मगर फिर भी, दो टूक बात करता हूँ। जो सोचता हूँ वो लिखता हूँ। हो सकता है पढ़ने वाले को बुरा भी लगे। ये नहीं कहूँगा कि किसी को बुरा लगने की मुझे कोई चिंता नहीं मगर उससे ज्यादा जरूरी मेरे लिए अपनी बात आपके सामने रखना है। अगर किसी को मेरी बातें बुरी लगी हों तो माफ कर दें और अगर कोई बात गलत लगी हो तो कृपया मुझे जानकारी भी दें। धन्यवाद!

6 comments:

निर्मला कपिला said...

आपकी बात बिलकुल सही है। मगर लगता है कभी इसका रूप बदलेगा शायद ब्लागिन्ग अभी अपने शैशवकाल मे है। आशा पर ही संसार टिका है आप अपना काम करते रहें इन बातों की ओर ध्यान ना दें । शुभकामनायें

Randhir Singh Suman said...

nice

रोमेंद्र सागर said...

ब्लॉग्गिंग आखिर क्यों ????

बड़ी सीधी सी बात है दोस्त .....तुम लिखोगे , मैं पढूंगा ...मैं लिखूंगा तुम पढोगे...फिर हो सकता है टिप्पिया भी दें !
और सिलसिला चल निकलेगा !!
हर कोई अभिव्यक्ति भी चाहता है और उस अभिव्यक्ति का ग्राहक भी ...यही गोरखधंदा है बॉस !!

......लो बात बात में आज का ब्लॉग तो वसूल हो गया !! ;)

Aashu said...

@रोमेंद्र सागर जी: मेरा सवाल सिर्फ ब्लॉग्गिंग आखिर क्यूँ तक ही सिमित नहीं है. आपने सही कहा कि हर कोई अभिव्यक्ति चाहता है मगर क्यूँ ऐसा होता है कि ये अभिव्यक्तियाँ सिर्फ नकारात्मक होती हैं. अपनी खुशी की, किसी चीज के प्रति अपने स्वीकृति की अभिव्यक्ति का माध्यम भी ब्लॉग बन सकता है मगर क्यूँ इसे उस रूप में नहीं लिया जाता. मेरा सवाल सिर्फ इतना ही है!!!
धन्यवाद सब लोगों को ब्लॉग पसंद करने के लिए!!

Anonymous said...

Hello. And Bye.

Deepika said...

u r right... aapne bahut essily bahut kuchh samjha diya h ..aise hi likhte rhiye
all d best