Wednesday, January 27, 2010

हम और हमारी वो...

इधर कई दिनों से समसामयिक गतिविधियों पर कुछ पोस्ट मैंने अपने इस ब्लॉग पर लिखे हैं। इन पोस्ट के बारे में मैं जब हमारी 'उन्हें' बताता था तो हर बार एक ही जवाब उधर से मिलता था, "भै! तुम तो हमेशा ऐसा ही सब बात पर लिखते हो जो हमरे पल्ले ही नहीं पड़ता। पता नहीं कोई तुम्हारा ब्लॉग पढता भी है या नहीं। हमको तो नहीं लगता। के ई सब आएं बाएं पढ़ेगा। अरे हमरे बारे में लिखो तो लोग को अच्छो लगेगा!" इतनी प्यार और मिठास के साथ उसका बोलना ही काफी था कि आज मैं यूँही उसके बारे में कुछ लिखने जा रहा हूँ.

पटना मेडिकल कॉलेज में जब साढ़े चार साल पहले एडमिशन लिया था तो यहाँ के माहौल के बारे में खासी जानकारी नहीं थी. बस एक विचार ही था कि बढ़िया डाक्टर बनना है तो बाबू मन लगा के पढ़े पड़ी, एन्ने ओन्ने मन के दौड़ावे से काम ना बनी. इसी विचार के साथ हमने कॉलेज में अपना पहला कदम रख दिया. उस समय रैगिंग पर पूरी तरह से रोक नहीं लगी थी और हम फ्रेशर के लिए कॉलेज में एक ड्रेस कोड था जिसमे उजले शर्ट और पैंट पहनने पड़ते थे और साथ में एक हरे रंग की टाई. लड़कियों के लिए उजला सलवार समीज और एक हरा दुपट्टा हुआ करता था. पहली ही दिन हमलोग को पकड़ कर हॉस्टल के छत पर ले जाया गया. रैगिंग क्या होता है जब तक ये जान पाते कि तभी एक बॉस ने पूछा, "फाईलम का है रे?" "जी, chordata",
इस सोच के साथ कि बौसवा तो खुश हो जायेगा, एक भले पढ़े लिखे जीव विज्ञान के छात्र की तरह हमने भी तपाक से जवाब दे दिया. शाबाशी की आस मन में लगाये बॉस के जवाब का इंतज़ार कर रहे थे कि सामने से तपाक से झाड पड़ी, "रे! साला हमलोग non-chordata हैं का रे. साला फाईलम chordata बताता है, हमनी तो जैसे इन्सेक्ट है. का रे, का बूझ लिया है, ढेर स्मार्ट है का तुम." चुप चाप सुनकर सोच ही रहे थे कि हमसे क्या गलती हुई है तभी एक और सीनियर के बोलने पर एक batchmate ने आ कर कान में कहाँ, "फाईलम का मने यहाँ पर caste होता है, अपना जात बता दीजिये."

यही से शुरू हुई हमारी जातीयता कि यात्रा. इसे हम फ़ाईलमबाजी कहते हैं. बिहार में कही भी जाएँ और अपनी जात का ज़िक्र न हो तो शायद बिहार अधूरा ही रह जाये. हर ओर बिहार की तरक्की गूँज रही है मगर आज भी यहाँ सबसे ज्यादा बोलबाला समाज के जातीय बनावट का ही है. इस बात की पुष्टि मुझे कॉलेज के उस पहले ही दिन मिल गयी. खैर फाईलम बता कर हमे कुछ बौस समजातीय मिल गए जिन्होंने हमे वहा की रैगिंग से छुटकारा दिला दिया. उसके बाद शुरू हुआ अपने बैच में अपनी फाईलम के लोगों को ढूंढना. लड़के और लड़कियां दोनों. पहले एक मिला, उसने दुसरे से मिलवाया फिर तीसरे से और इस प्रकार हमारे फाईलम के सभी लोग बैच में मिल गए. इसी क्रम में हमारी 'उनसे' पहली मुलाक़ात हुई. वो पहली ही दिन कॉलेज आई थी. दो और लड़कियां उसे लेकर हम लड़को के पास आई, ये बताने कि ये भी हमारी ही फाईलम की है और वही हुई हमारी पहली मुलाक़ात. हमने भी बड़े शान से पूछ लिया, " ओह, तुम भी अपनी ही फाईलम हो." अपनी मीठी सी जुबान से उसने जवाब दिया, 'हाँ.' बस यही थी हमारी पहली वार्तालाप.

अच्छा डाक्टर बनने के लिए मन में जो विश्वास
लड़कियों के खिलाफ बनाया था वो तब भी जारी था. पढाई पर ध्यान लगाना और लड़कियों को दूर रखने के लिए बेजा हरकतें करना हमारी आदत और फिर एक पहचान बन गयी. इन सब बातों में मैं उस पहली मुलाक़ात को कही भूल ही गया. शुरुआत में उसकी तरफ कोई आकर्षण भी नहीं हुआ करता था और न ही कोई अनायास बातचीत. वो अपने रास्ते चलती थी, मैं अपने. सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि हम कभी इतने करीब आयेंगे जितना आज हैं. सच पुछो तो याद नहीं कि फिर कब उस से दुबारा बात हुई थी.

वक़्त गुजरता गया, धीरे धीरे एक सेमेस्टर भी बीत गया. तब तक रैगिंग ख़त्म हो चुका था और फ़ाईलमबाजी के नाते एक-आध बार और हमारी बात हो चुकी थी. मेडिकल कॉलेज कि थोड़ी हवा हमें भी लग चुकी थी और लड़कियों की हमेशा खिलाफत करने वाला मैं थोड़ा नरम हो चुका था. बदलाव अभी जारी ही था और धीरे धीरे दिल और पिघल रहा था. २-३ लड़कियों से काफी बातें होने लगी थी और उनके वाया ही कभी कभार हमारी 'उनसे' भी बात हो जाया करती थी. धीरे धीरे बातों का दौड़ कैन्टीन तक चलने लगा. उसकी वो मुस्कराहट, वो भोलापन, वो सादगी, वो बचपना सब धीरे धीरे मन को भाने लगा. उस के साथ वक़्त गुजारना अच्छा लगने लगा. मन ही मन में वो चाहत शायद फूट चुकी थी जिसका एहसास मुझे पहली मर्तबा उस से उसके जन्मदिन के दिन फ़ोन पर बात करने के बाद हुआ.

इस एहसास को उसे बयां करने में 4 महीने लग गए. 25 सितम्बर की वो सुबह मुझे आज भी याद है. हम सड़क पर मिले. दोस्तों की बदौलत उसे मेरे मन की बात पता चल चुकी थी और मुझे भी पता चल चुका था कि मन ही मन में वो भी मुझे चाहती थी. फिर क्या था हो गयी बात. मैंने उसे बड़े ही रोब के साथ कहाँ, "देखो तुम सब कुछ जानबे करती हो कि मेरे मन में क्या है और हमको भी तुम्हरे बारे में पते है. तुमको कोई प्रॉब्लम नहीं हमको भी कोई दिक्कत नहीं. तो चलो और बात ही क्या करना है, हो गया बात, क्या?" और फिर एक बार वो ही मिठास भरी आवाज में उसका जवाब था, "हाँ." वो पहली मुलाक़ात की 'हाँ' और इस 'हाँ' में कोई फर्क न होते हुए भी कितना बड़ा फर्क था. आज भी उसकी इसी एक 'हाँ' के तो हम दीवाने हैं....................



15 comments:

Anonymous said...

Waah! Padh kar maja aa gaya. Love is great.

Unknown said...

ka baat hai be.........aab to milna hi padega tere us se :) :) itna serious sala bataya bhi nahi :)

मनोज कुमार said...

वाह!! बहुत अच्छा लगा पढकर!!
28 साल हो गया कालेज छोड़े! ई फाईलमबाज़ी अभियो चलता है! जानकर सुखद आश्चर्य हुआ कि हमरा बिहार अबहियो ऊहें है जहां हम छोड़े थे।

kunal bhardwaj said...

its really a treat to read ur simple yet powerful story... ur collosal tale of "phylumbazi" at PMCH is really interesting. however i wonder that how this caste mindset has not affected my campus. Probably the intake of outsiders has stemmed the rot. i wud really love the day wen people will start taking this caste system as a mere misnomer. i kno u wont believe me when i say that probably we dont even know the caste of our roomies..

dr s trivedi said...

kya sir ji..........aap to pure emotinal state me aa gaye hai..............waise banhiya hai .......bahut banhiya hai......mere me bhi dil me khyal aa raha hai kuch aisa hi likh dale........enjoy reading you blog......

Anonymous said...

masum chehre k kya bat unko to ane laga pyar....boss apka love story pyar aur masumiat k atut riste ko jiwant kar raha hai .....

PSS said...

ab bas shadi kar hi daalo, zyada der mat karo.

jayanti jain said...

superb expression of love

Aashu said...

Thanks to everybody who liked my post and loved my love story. To anybody who has some sort of disbelief in the authenticity of the story, I just want to say that all the characters and events in this story are non-fictitious and purely non-coincidental..... :)
धन्यवाद!!!

shama said...

Wah! Swagat hai..bada mazedar likha hai!

Anonymous said...

loved EVERY bit of it!!! liked wat u hav mentioned abt 'phylumbaazi', cud easily relate myself somewhere too..lol...but the best part was about 'tumhari wo':)tell u sth honestly....there were times wen i SERIOUSLY used to wonder how u both fell for each other!! i mean, both of u r poles apart....she being a real sweetheart :) n u being a real jerk :P but then 'opposites attract' and u both are a living example of it:D
u hav aptly described the 'love of ur life'..she'z truly a gem of a girl...n ur closing line is too good:)

kshama said...

Guzare zamane yaad aa gaye!

Unknown said...

yeh chhoti si love story bahut pyari hai..aur interesting bhi..god bless both of you..bhagwan se dua karte hai ki tum dono hamesha khush raho...

अजय कुमार said...

हिंदी ब्लाग लेखन के लिये स्वागत और बधाई । अन्य ब्लागों को भी पढ़ें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देने का कष्ट करें

Unknown said...

Dear accha laga, ye padkar.ALL the Best.